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________________ मार्च - २०१६ श्रीऋषभदेवनी रस्तुतिओ - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वाचक सकलचन्द्रकृत 'गणधरप्रबोध'नी प्रतिमां, ते कृति पूरी थतां ज ४ श्लोक प्रमाण ऋषभदेवस्तुति छे. आवश्यक क्रियामां बोलाती ४ थोय - प्रकारनी आ स्तुति छे. कर्ता- नाम नथी. सकलचन्द्र गणिनी होय तो बनवाजोग छे. आमां ३ श्लोक अनुष्टुप् अने एक - त्रीजो श्लोक आर्यामां छे, ते विशेष. बीजी स्तुति प्राकृतमां पांच पद्यात्मक छे. ते पण प्रकीर्ण पत्रमाथी उतारी छे. भावोत्पादक रचना. युगादिपुरुषेन्द्राय, युगादिस्थितिहेतवे । युगादिशुद्धधर्माय, युगादिमुनये नमः ॥१॥ ऋषभाद्या वर्धमानान्ता, जिनेन्द्रा दश पञ्च च । त्रिकवर्गसमायुक्ता, दिशन्तु परमां गतिम् ॥२॥ जयति जिनोक्तो धर्मः, षड्जीवनिकायवत्सलो नित्यम् । चूडामणिरिव लोके, विभाति यः सर्वधर्माणाम् ॥३॥ सा नो भवतु सुप्रीता, निर्धूतकनकप्रभा । मृगेन्द्रवाहना नित्यं, कूष्माण्डी कमलेक्षणा ॥४॥ " श्रीऋषभदेवस्तवनम् जयसि तुमं भुवणावलि-सरोजवणसंडचंडमायंड! । वम्महमयंदसिंधुर-कुंभयडवियाडणमयंद! ॥१॥ मुत्तिवहूकंठग्गह-उक्कंठिय! मलियमोहमाहप्प! । तुज्झ नमो तिहुयणरक्खणक्खणिय! परमकारुणिय! ॥२॥
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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