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________________ मार्च - २०१६ ११९ सागरना पाणी जिम शुद्धहृदय । समुद्र जिम गंभीर । कुंजर जिम सोंडीर । वृषभ जिम जातथाम । सिंह जिम दुर्द्धर । संख जिम निरंजन । गइडाना सींग जिम एकाकी । जाल जिम सव्वफासे । अश्व जिम तेज कूर्म जिम गुप्तेंन्द्रिय। पृथ्वी जिम सर्वसहा । कमलपत्र जिम निर्लेप । इसा जे छइ साधु भगवंत दयातणा प्रतिपालक । भगवती अहिंसा सर्वभूतनइ क्षेमंकरी । सत्पुरुषासेवी । कातरजीव परिहरी । तेहना प्रतिपालक। अनाथजीवना नाथ । अपीहरना पीहर । अशरणना शरण । सर्वज्ञपुत्र साधु निःकिंचण, निरहंकारी, नि:परिग्रही, निरारंभी, शांत, दांत, रत्नत्रय साधक अढाई द्वीपमाहि जिके छइ साधु ते सविहुं प्रतइ माहरउ नमस्कार पंचांगप्रणाम त्रिकालवंदणा सदा हुओ। ___ इति श्रीपंचपरमेष्ठिनमस्कारार्थः संपूर्णः ॥ संवत् १६३५ वर्षे अश्वयुग्मासे विजयदशम्यामलेखि पं० नयकमलगणिवाचनार्थम् ॥ श्रीः ॥
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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