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________________ मार्च - २०१६ १०१ दोहा - धन देस धन नगर सुभ, धन परजा धन राज, धनि जा भोमि महावरां, जांहा दिलसुधराम महाराज... ७३ (धन्य देश, धन्य शुभ एवं नगर, धन्य प्रजा अने धन्य राजा, धन्य ए भूमिने के ज्यां दिलसुधरामजी महाराज बिराजमान छे.) धन रतलाम जुं जानीए, धनि सेवक धनि संत, श्रीदिलसुद्धराम महाराज को, निति प्रति दरस करंत... ७४ (धन्य रतलाम गामने जाणीओ, धन्य छे ए सेवक अने संतोने के जे नित्य दिलसुद्धरामजी महाराजनां दर्शन करी रह्यां छे.) झूलणा - श्रीदिलसुधराम बिराजत है, जग जीव जो पार उतारिहे जी, मालवो देस कीयो अत पावन, ओरा केते नर नारी है जी, आप सुभ द्रष्ट निहारी देखो, तब दासको आनंद होत है जी, रतलाम ज सुभ ग्राम तहां, दसू देसके दरसन पाई है जी... ७५ (हमणां रतलाम जेवा शुभ गाममां श्रीदिलसुद्धरामजी बिराजे छे, जगतना जीवोने पार उतारे छे, माळवा देशने अति पावन कर्यो छे, अने केटलाये नरनारीओने आप शुभ दृष्टिथी निहाळो छो त्यारे दर्शन करतां दासने आनंद थाय छे.) कुंडल्या - गुर महिमां तो अगम है निगम न पारै पार, 'रिष तपसी मूंनी जनां कहै सब अवतार, कहै सरबै अवतार संत जन कहै ज सबही, नारद सनकादिक कहै ब्रह्मादिक तबही, श्री मुख सै श्रीपति कहै वामैं फेर न सार, गुर महमा तो अगम है निगम न पावै पार... ७६ . (गुरुमहिमा तो अवो अपार छे के अनो शास्त्रो पण पार न पामी
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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