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________________ मार्च - २०१६ ९९ बा (नवा योगेश्वर रामजीओ जनक विदेहीने विख्यात कर्या, तो शुकदेवजीओ परिक्षित राजाने अक पळमां पार पहोंचाड्यो.) सात दिवस लगि कथा कराई, कलि जीवन हिति काज सवाई, ओह सब संत भई परमानै, सतजुग त्रेता द्वापुर जानै... ६७ (सात दिवसनी ओ कथा कळियुगना जीवोना हित काजे करवामां आवी, ओ तमाम संत तो सतजुग, त्रेता अने द्वापरना हता.) अब कलिजुगमै आप सहाई, राम रटण करो सुखदाई, बोहो जीवन कीनो साता, तुमरी महैमां को विख्याता... ६८ (अनेक जीवने शाता आपनारा, सुखदायक अवं रामरटण करनारा, जेनो महिमा विख्यात छे अवा आप मात्र हवे कळियुगमां सहाय करनारा छो.) कबित्त - बालमीक ज्युं बुधसें संसे ध्यान निरंतर, सनकादीक सी दसा रांम को नाम जु अंतर, टेक जांन प्रहलाद परम आनंद सरुपा, धू(व)सें ध्यान सदीव रांमको नाम अनूपा, बासिष्ट मुनीसे सांत गी बसुधा धीर समान, जैसे गुण गुर देवजी करुणां सागर जांन... ६९ (वाल्मिकनी जेम निरन्तर ध्यान धरनारा, सनकादिक जेवी दशामां रामनाम अन्तरमा धारण करनारा, प्रहलाद सम टेकीला अने परम आनंदस्वरूपा, ध्रुवजीनी माफक सदैव रामना अनुपम नामनुं ध्यान करनारा, वशिष्ट मुनिथी पण शांत अने जेमनी धीरज धरती समान छे अवा करुणासागर गुरुदेवमां अनेक गुणो व्याप्त छे.) गोरखसे जितेंद्रिये काम दल गिगन चढाया, भरम रसो* बैराग त्याग सो सदा सवाया, गोपीचंद ज्यूं जाने ग्यांनकै मांहि वखांनूं, नाम कबीरा जिसा उजागर भओ प्रमां, . * ब्रह्मरस
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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