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________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ मोदक सरस आहार जे, प्रतिदिन विहरउ आई; तुम्ह गुणि मुझ मन रंजीउ, रिषिजी करउ पसाई... १४ ॥ छपया ॥ तात भणइ धुय सुणउ, भुवनसुन्दरि जयसुन्दरि; जंगम सुरतरु पत्त, ओह मुनिवर हम मंदिरि; रूपपराव्रत पमुह सुगुण, बहु लबधि मनोहर; रूपिसु रतिपतिरमण, अहव नलकूबरसोदर; आवासि अम्ह राखउ सही, भक्ति युक्ति दाखी घणी; तुम्हि रूपसक्ति जग मोहीयउ, कउण वात मानवतणी... १५ ॥ काव्य ॥ साहू मोयगलाहउ नडगिहं पत्तो दुइज्जे दिणे, लोभेउं पडिपुन्नदाणवसउ(ओ) मोहं समुष्पाविउं; दो धूया वि तया पियस्स वयणा काऊण सिंगारयं, चिटुंतीउ मुणीसरस्स पुरउ सोदामिणीसंनिभा... १६ आदौ मज्जन १ चारुचीर २ तिलकं ३ नेत्रांजनं ४ कुंडलं ५, नासामौक्तिक ६ पुष्पहार ७ करलं ८ झंकारकृन्नूपुरं ९: अंगे चंदनलेप १० कंचुक ११ मणी १२ क्षुद्रावलीघंटिका, तांबूलं १४ करकंकणं १५ चतुरता १६ शृंगारकाः षोडश... १७ || गाथा ॥ अइनेहमाणिऊणं हावं भावं च संदिसंतीउ; महुराओ वाणीओ, कुणंति विन्नत्तियं अवं..... १८ ॥ दूहउ ॥ कांमिणि मोहणवेलडी, आनंद हेतु अपार; विषयसुख छई अमृतफल, भोगवि तूं भरतार... १९ ॥ सोरठउ ॥ अम्ह साम्हउ इकवार, जोइ सुधारस लोयणे; रिखि तुं करुणभण्डार, पाओ लागइ पदमिनी... २० वरषति घन असराल, श्रावणि विरह जगावतउ; भोगवि भोग भुयाल, लील लही इणि मंदिरई... २१ ॥ अडिल ॥ दुझर रयणि अंधारि घनंबर छाईयई, वर्षति धार अखंडसु प्रेम जगाईयई; चातक सद्द सुणंति प्रीउप्रीउ सल्लीयई, लहि भाद्रवि सुखविलास अनेथिन(?) चल्लीयई... २२ पुन्निमचंदकी झुन्ह जि मत्तनिल ग्रही, ताप विथा तब गाढ विहानल ज ग्रही; तब नीर निरम्मल साउ तंबोल असाइयई, अरिहां! आसु कुंयारि महल्ल सुपुण्णइ पाईयई... २३ ॥ चउपई ॥ तारण तरुवर फल तजि म भोगा, तुम्ह वय जोवन कुणसु जोगा; गीतनाद विषया रस चंगा, कात्तिगि प्रिय तुम्हि करउ सुरंगा... २४ अगहनि गहनि विथा अतिबाढई, व्यापति पंचबाण तनि गाढई; कामिणि कंत विणा किम जुजई, रहिअ वासि हम कृपा करीजई... २५ पोस निसा प्रिययोगि विहावइ, दीपक जोतिअ वासि सुहावई; सरस अहार सुरंग करेवा, भोगाउ मासि पुण्य फल लेवा... २६ पान पदारथ सुपुरुष अग्घा, जिहां जाइ तिहां मोल मुहंग्या; हठ विवाद करती नहु सुंदरि, माघमासि रहिवउ ईण मंदिरि... २७ फागुणि पवन चलइ मलयाचल, तीरपा हि तनि लगई समग्गल; अंगि अनंग धखइ विरहानल, प्री विणु छार सिंगार समुज्जल... २८ ॥ कुंडलिया ॥ चंदन घसि मलयाग, करउ विलेपन अंगि; विजनि पवन सीतल लीयउ, चेत्रि सुभुवणि उत्तुंगि; • केशरचनाकरणं.
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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