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________________ जून २०१५ ३५ वैशेषिक ब्राह्मण आवस्तिया अग्निहोत्रआ दीक्षित जानी दुवे त्रिवाडी व्यास जोसी पण्डित बडूआ एवमादिभेद छठइ दर्शनि नास्तिक जोगी हरमेखलिआ इन्द्रजालिआ नागमतिआ तोतलमतिआ गोगामतिआ धनवंतरिआ नोरसिआ धातुर्वादिया एवमादि भेद-प्रभेद बहुल छ दर्शन कहीई । अनइ वली जेहथी श्रीमहम्मद पातसाहतणइ राजि च्यारि वर्ण, नव नारू, पांच कारु, ए अढारइ प्रकृति सदा सुखित मुदमुदित वसई, ते इसिठ राजाधिराज सर्व वइरी जीपतउ, सूर्यनी परि तेर्जि दीपतउ, तुरुष्ककुलमण्डन सोमतणी परि सौम्यदर्शन प्रजा प्रति पीहर सेवकसदाफल सुरत्राण श्रीम (अ) हम्मदपातसाह तणउ पुत्र, संग्रामि शूर वीराधिवीर सुरत्राण श्रीमहम्मदपातसाह वर्णवी तर शोभइ ॥१॥ अहो वरबोलि । इति श्लोकः ॥ ३६ अनुसन्धान-६७ श्रीलोजदेवरचितः धरणविहारस्य युगादिदेवस्तव: (सावचूरिः ) • सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय तपगच्छपति श्रीसोमसुन्दरसूरिजीना शिष्य श्रीसोमदेवसूरिजी समर्थ कवि, व्याख्यानकार अने वादी हता. मेवाडनरेश राणा कुंभाजी तेमनी काव्यकलाथी, जूनागढनो रा'मंडलिक तेमनी समस्यापूर्तिनी शीघ्रताथी तेमज चांपानेरनो राजा जयसिंह चौहाण तेमना उपदेशसामर्थ्यथी प्रभावित थईने तेमने बहुमानता हता. सोमदेवसूरिने सुधानन्दनसूरि, सुमतिसुन्दरसूरि, पं. नन्दीरत्नगणि, पं. चारित्रहंसगणि, पं. सिद्धान्तसागरगणि, पं. रत्नसागरगणि, रत्नमण्डनसूरि व बहोळो शिष्य-प्रशिष्य परिवार हतो. महो. हेमहंस गणिना तेओ विद्यागुरु हता. सिद्धान्तस्तव (जिनप्रभसूरि ) अने युष्मदस्मस्तव (-सोमसुन्दरसूरि) पर अवचूरिओ, कथामहोदधि, चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र व. तेमनी रचनाओ छे. सं. १४९६मां राणकपुरना त्रैलोक्यदीपक प्रासाद धरणविहारना प्रतिष्ठामहोत्सव वखते तेमनी आचार्यपदवी थई हती. प्रस्तुत स्तव ते प्रासादना ज मूळनायक श्री आदिनाथनी स्तवनास्वरूप छे. कृतिना अन्ते पुष्पिकामां तेमनो 'उपाध्याय' तरीके उल्लेख होवाथी आ स्तव प्रासादनी प्रतिष्ठापूर्वे रचायुं होय अने लखायुं होय तेम सम्भवे छे. कदाच प्रतिष्ठामहोत्सव दरमियान ज आचार्य पदवी पूर्वे ते रचायुं होय अने लेखन वखते तेमनो रचनाकाळनो उपाध्याय तरीकेनो उल्लेख यथावत् रखायो होय तेम पण बनी शके. ९ श्लोकनुं आ नानकडुं स्तोत्र यमक अने अनुप्रासने लीधे आह्लादक बन्युं छे. व्याकरणनुं ऊंडुं ज्ञान, शब्दकोशोनुं परिशीलन अने कल्पनाकौशल आ बधां वानां भेगां थाय तो ज आवां काव्यो नीपजी शके. काव्यना अन्ते कविओ दीक्षागुरु सोमसुन्दरसूरि अने विद्यागुरु 'कृष्णसरस्वती' जयचन्द्रसूरिनां नाम गूंथ्यां छे. स्तव पर कोई अनामी विद्वज्जने (प्रायः कर्ताना शिष्यपरिवारमांथी ज कोईक हशे ) अवचूरि लखी छे. वच्चे मूळ स्तव अने फरती चार बाजु अवचूरि लखेली पंचपाठी प्रत परथी काव्यनुं सम्पादन थयुं छे. संवेगहंस गणि द्वारा लिखित आ प्रत पूज्य
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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