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________________ ___अनुसन्धान-६६ हेजइंनइं हीअडूं वाला ऊलसइ रे, जेसिंगजी तुम तणि नामि रे, मेघ गाजंतइ जिम मोरनं रे, चैत्र मासइं जिम ते आराम२३ रे. 12 . मांडीजइ सरसव अटलु रे, पालीजइ मेरु समान रे, श्रीगुरु तणुं रे सनेहलु रे, जिम ते जेठ मासिं ऊधांण रे. 13 नेहरयण रूडई राखीइ रे, जिम न पडइ ते वीसार रे, छल२५ जोईनइ चोरइ रखे रे, दुरिजन चोर संसार रे. 14 . रखेनइं वीसारुं वाल्हा वीनती रे, तुम्ह तु करुणा परगल धार६ रे, थोडइ नि कहई घणुं जाणिवू रे, लिखत न आवइ पार रे, 15 गाम-नयर पुर देसमां रे, जिहां आपणुं नहीं कोइ रे, जय जंपइ. नांम तुम तणु रे, सघलइ सखाई होइ रे. 16 .. ढाल - त्री(तृ)तीया ॥छ। राग-गुडी // दूहा : जेसंगजी गुण ताहरा, गुणत न आवइ पार, गुणतां सुरगुरु मूंझीइ, उर" कवि कुण विचार. 1 वली वली जोऊ वाटडी, जय जंपइ गुणगान, अधर अध्यातम मेलीयां, जेसंगजी तुम ध्यानि. 2. जेसंगजी तुम वीनवं, सींचनि दरसन मेह, दुरित ताप सवि उपसमइ, वाधइ अधिक सनेह. 3. सुहगुरुजी मानु रे मानु रे बोल० परम पटोधर हीरनाजी, वीनतडी अवधारि नयरी त्रंबावती ईहां अछइजी, अमरापुरी अणुंसारि जेसंगजी, आव आणइं रे देस, [जेसंगजी], पगि पगि नयर निवेस, जेसंगजी, वल्लभ तुह्म उपदेस, जेसंगजी, होसइ लाभ विसेस. जेसंगजी, आवु आणि रे देस [आंचली] 1 पोढां मंदिर मालीयांजी, उंचां पोल पगार, वाणिज करइ व्यापा]रीआजी, जिहां नहीं चोर वखार८. 2 जिनप्रासाद सोहामणाजी, उत्तंग अति अभिराम, ध्रमसाला चित्रकारिणीजी, भविअणजन विश्राम. 3 .
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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