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अनुसन्धान-६६
प्रणम्यां पाप पलाय जाय राय मांनइं आंण
मंगल कमला कुल कलोल त्रिभुवननो भांण ॥१॥ धरणेसर नागिंददेव पउमावइ माय
अहनिस सेवइं भावसुं ए भगवानना पाय । सेवकनी सोभा करई ओ धन धन्न समप्पई
दुज्जण कोर मरोर रोर जन रज्जई थप्पई ॥२॥ अविचल कीरति तास खास आगास अगासइं . '
जिनवर नाम जंपत संत त्रिण भुवने भासई । दुट्ठ महाभय अट्ठ कट्ठभर दूरइं नासइं
अमर तणी परि भोग लोग पामई उल्लासई ॥३॥ हयवर गयवर गाजता ओ छाझई दरबारई
गुणिअण गावई गीत प्रीति पसरइं जगसारई । भीम भवोदधि जिनवरू मे प्रवहण जिम तारइं
निर्मल रूप अनूप भूप सहु जिन संभारइं ॥४॥ पास यक्ष वइरुट्टदेवि जय विजया देवी,
सेसनाग बहुरागसुं जे अहनिश रहई सेवी । मेघविजय कहइं नित्त चित्त ध्याउ प्रभु एह.
संपद पदवी राजलच्छि पामउ ससनेह ।।५।।
इति मगसीपार्श्वस्तवनम् ॥