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________________ फेब्रुआरी - २०१५ ४३ मानातृपतिविरचितं पूर्णतल्लगच्छीय-श्रीशान्तिसूरिकृतटीकोपेतं वृन्दावनकाव्यम् - सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय संस्कृत काव्यसाहित्यनो अेक प्रकार 'खण्डकाव्य' छे. खण्डकाव्यमां महाकाव्यनी जेम व्यक्तिना समग्र जीवनकाळनुं के लांबा समय सुधी चालती घटनानुं वर्णन होतुं नथी. तेमां तो फक्त एकाद नानकडा प्रसङ्गनुं के वस्तु- बयान ज होय छे. तेथी ते काव्यनो एक टुकडो ज गणाय छे. खण्डकाव्य, लक्षण पण्डित विश्वनाथ आq जणावे छे : "खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैक-देशानुसारि यत्" (साहित्यदर्पण - ६.३०९) अर्थात् खण्डकाव्यमां महाकाव्यना एकदेश-एकाद घटना के वस्तुनुं ज विशेष वर्णन होय छे. प्रस्तुत वृन्दावनकाव्य पण एक खण्डकाव्य जगणाय छे. जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास - खण्ड २, प्रकरण ३५मां (ले. - हीरालाल र. कापडिया, प्र. - मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, १९६८) जणाव्या मुजब जे ८ अजैन खण्डकाव्यो पर जैन मुनिओओ टीकाओ रची छे, तेमां आनो समावेश थाय छे. . . कुल ५२ श्लोको धरावता आ काव्य, विषयवस्तु आ प्रमाणे छे : श्लोक १-३. विष्णुस्तुति ४-६. बलदेवस्तुति ७-११. कविना पिता उग्रसेन राजानुं गुणवर्णन १२. काव्यनो उपन्यास १३-१४. कृष्ण-बलदेव- वृन्दावनगमन १५-२८. वर्षावर्णन २९-३३ कृष्णशोभावर्णन ३४-३६. बलदेवशोभावर्णन ३७-५१. बलदेवे कृष्णंने उद्देशीने करेलु उद्बोधन ५२. उपसंहार. ____ आ समग्र काव्य यमकमय छे. श्लोक १-३१, ३४-३७, ४०-५२ मां प्रथम अने द्वितीय चरणना तेमज तृतीय अने चतुर्थ चरणना अन्तिम ४-५ वर्ण सरखा छे, ज्यारे श्लोक ३२-३३, ३८-३९ अन्य प्रकारनो यमक धरावे छे. समग्र काव्य अवलोकतां कर्ताना वैदुष्य, शब्दशास्त्र पर प्रभुत्व, कल्पनाशक्ति व. प्रत्ये अहोभाव जन्मे तेम छे. - काव्यना कर्ता उग्रसेननृपतिना पुत्र छे. तेमनुं मूळ नाम तो अज्ञात छे, पण
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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