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अनुसन्धान-६६
प्रथमाक्षरथी 'सिरोही' मळे. आ वि.प. सिरोही मोकलायो छे. गू. २ नो अर्थ 'जीव' अपायो ज छे. गू. ३नो जवाब छे : सेवक. वक (बक) पक्षी. सेक = ताप. सेव = भोजननी वस्तु. गू. ४ नो जवाब 'दरसण' बराबर छे. गू. ५ नो जवाब 'कीकी' सम्पादके आप्यो छे. गू. ६नो जवाब 'सवी' (बधुं) छे. उलटा वीस अक्षर एटले 'सवी' - 'अमने सवी (बधुं) लखजो.' गू. ७नो अर्थ पण 'दरसण' आवे छे. 'दरबार'नो अर्धभाग 'दर'. कागळनो तात एटले जनक सण (शण) छे. शणमांथी कागळ बनतो.हतो. अन्ते श्रावक-श्रेष्ठिओनां नामो ध्यान खेंचे छे. श्रावकोए लखेल लखाणमां भाषानी अशुद्धता घणी छे जे त्यारना समाजमां शिक्षण- प्रमाण ओछु हतुं ते दर्शावे छे.
___ २०-२१-२२ क्र. वाळा वि.पत्रो मुख्यत्वे गुजराती छे. छन्द, देशी ढाळो, दूहा, रसभर्यां वर्णनो वगेरे थकी आवा पत्रो एक साहित्यकृति केवी रीते बने छे ते आ पत्रो वांचवाथी समजाशे. पृ. २१६, पं. १२ - 'रयणा गिरनार-तन' छपायुं छे ते लिप्यन्तर करती वखते थयेली वाचनभूल छे. 'रयणागिरना रतन' एम वांचवें जोइतुं हतुं. पृ. २१८, पृ. १३ - जिनसर छे त्यां पाठ त्रुटित छे. जिन सर[दार] एवो पाठ विचारी शकाय. पृ. २२०, पं. नीचेथी २-मां वाचनभूल जणाय छे. 'डगग गयंद डिगमगत, थग थग थरकीय' एम वांचवाथी अर्थ बेसे छे. 'त्कासन' छे त्यां 'आसन' जेवो शब्द होवानो सम्भव. ह.प्र. तपासवी पडे.
___ चाणस्मा अने घाणेरावनां वर्णनो सारी विगतो आपे छे. रचयिता मारवाड़ी अने चारणी भाषाना पण खासा जाणकार छे. तळपदां राजस्थानी, उर्दू अने चारणी शब्दो आमां पुष्कळ छे. वाचनभूलो थकी पण भ्रामक शब्दो सर्जावा पामे एम बने. जेमके, पृ. २२९, पं. ३मां 'छिब' छे, पण अहीं 'छबि' शब्द स्थानप्राप्त छे. छबि सहिरकी = शहेरनी छबी.
आ वि.प. मां गाहिड़, गाहिड़ गात जेवा शब्दो ते ते भाषाना अभ्यासीओ माटे रसप्रद बने. वारंवार आवेलो बीजो शब्द छ : सांम-ध्रम, सांध्रम, सांम-सुधर्म. उणिहार, ठुकरानी जेवा शब्द भाषाना नियमोनां उदाहरण बनी शके. उच्चारपरिवर्तन केवी रीते स्थान ले छे ते ध्यानमा होय तो आवा