________________
फेब्रुआरी - २०१५
.
... १५३
पार पाड्युं छे. 'गुरुनां नेत्रोनुं वर्णन १५ जेटला श्लोकोमा थयुं छे. पृ. १०८, श्लो. २ मां दतिशप्यान (?) छे त्यां दतिशयवान्' पाठ विचारी शकाय. श्लो. ३मां पहेलु चरण आ रीते शुद्ध करी शकाय : नेमि जिनं यं प्रणमन्ति देवाः । पृ. १०१, श्लो. ५७मां 'परिपाट्या गतं' ने स्थाने 'परिपाट्यागतं' वांचq जोईए. पृ. ११७, पं. ९मां राग्न-गुर्वा० ए रीते पाठ बेसाडी शकाय छे.
त्रण पत्रो अने पत्रोना खरड़ाओ (क्र. ८-१७) वांचतां मजानी कविता वांच्यानी लागणी थाय. एकना एक विषयने विद्वान कवि-मुनिओए केटकेटलां लाड़ लडाव्या छे ! पृ. १३८, पं. ६ - 'त्वद्गाणी' छे त्यां त्वद्वाणी' समजवू जोईए. नीचेथी पं. ११ 'स्थल्याविवा०' छे त्यां 'स्थल्यामिवा०' साचो पाठ बने. पृ. १३९, पं. १ - 'कृतान्साभरैः' ने बदले 'कृताशाभरैः' संगत बने. पं. ८मां 'साधारणीया' छे ते वाचनभूल जणाय छे. साधारणायाः (स्त्री. नुं ष. ए.व.) होवू घटे. नीचे अन्तिम पंक्तिमां सूतस्थया (?) एम शङ्कायुक्त पाठ छे. त्यां पाठ बराबर ज लागे छे. सूत (सारथि) पासे रहेल दोरड़ा वड़े बळदो सीधा रस्ता पर लवाय, तेम - आवी अर्थसंगति छ ज. पृ. १४०, पं. ५ - 'विरचय (?)' ने स्थाने 'विरचितक्लेश०' एवो समास स्वीकारीए तो अर्थ बेसे.
क्र. १८ ना वि.प.मां संस्कृत,गुजराती,राजस्थानी,चारणी जेवी भाषाओ वपराई छे. पत्र विस्तृत, वर्णनप्रचुर छे. पृ. १४५, पं. १६- 'मांटे' ने बदले 'माहे', पृ. १४७, पं. नीचेथी २ - 'ठद्ध' छे त्यां 'छट्ट' होवा समजाय छे. पृ. १४८, पं. १२ - 'आवर' नहि पण 'अवर' जोईए. पृ. १४९, पं. १४ 'धण' छे त्यां घण हशे.
क्र. १९ना पत्र गुजरातीमां छे. क्र. २० नो वि.प. पण आवो ज छे. संस्कृत भाग ओछो, देशी छन्द अने ढाळनो उपयोग वधारे थयो छे. पृ. १८५ पर 'गूढा' छे. गूढा एटले समस्या जेवा दूहा. अहीं अमुक गूढाना उत्तर सम्पादके शोधीने आप्या छे. गूढा १ नो जवाब छे : 'सिरोही'. 'दधिसुता' = लक्ष्मी, पण तेनुं बीजुं नाम 'सियह मगूको.मां मळे छे. चन्द्रप्रिया = रोहिणी. अने मुक्ताहार हृदय पर धारण कराय माटे 'हीयडुं'. आ त्रण शब्दोना