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अनुसन्धान-६६
सिद्धहेमशब्दानुशासन - प्राकृत अध्यायगत केटलांक उदाहरणोनां सम्पूर्ण पद्यो
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय सिद्धहेमशब्दानुशासन - प्राकृत अध्यायमां निरूपित प्राकृतभाषाओना नियमोमांथी केटलाकने उदाहृत करवा श्रीहेमचन्द्राचार्ये ते समये प्रचलित प्राकृत साहित्यमांथी उदाहरणो प्रस्तुत करेलां छे. अत्यारे उपलब्ध साहित्यमांथी आ उदाहरणोनां मूल स्रोत शोधवान, उपलब्ध साहित्यनी विशाळताने कारणे मुश्केल बने छे. घणुं साहित्य लुप्त थई गयुं छे से पण मुश्केली खरी. वळी, ज्यां पद्यना वचला अक-बे शब्दो लेवाया होय त्यां तो मूल स्थाननी ओळख असम्भवप्राय गणाय. छतां कृतिओनी मूल्यवत्ता, स्वीकृति, प्रसिद्धि, पौर्वापर्य व. नक्की करवामां आवो प्रयास घणो मूल्यवान नीवडे छे.
वेबर, पिशेल, नीती दोल्ची, डो. कुलकर्णी, पं. श्रीवज्रसेनविजयजी, प्रा. विजय पण्ड्या व.अ आ दिशामां करेला प्रयासोनी नोंध, तेओओ शोधेलां मूल स्थान व. ने लगतो डो. हरिवल्लभ भायाणीनो मूल्यवान लेख अनुसन्धान - २, पृ. २५-४९ पर प्रकाशित थयो छे. तेओओ स्वयं पण घणां मूल स्थान शोधी आप्यां छे. प्रस्तुत लेख मे दिशामां ज अक वधु प्रयास छे.
खम्भातना श्रीशान्तिनाथ जैन ताडपत्रीय ज्ञानभण्डारमा वि.सं. १२२४ना वर्षे लखायेली हैम प्राकृतव्याकरणनी ताडपत्र प्रति छे.* कलिकालसर्वज्ञनी हयातीमां ज लखायेली आ प्रत पाठशुद्धिनी दृष्टिो तो महत्त्वनी छे ज, पण तेमां प्रतिलेखक द्वारा अथवा कोईक विद्वान द्वारा करवामां आवेलां टिप्पणो पण बहुमूल्य छे. तेथी सं. २०४५मां खम्भातमां स्थिरता दरम्यान पूज्यपाद गुरुभगवन्त आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजे प्रत उकेलीने पाठशुद्धि तेमज टिप्पणोनी नोंध तैयार करी हती.
_ आ टिप्पणोमां घणे ठेकाणे टिप्पणकार विद्वाने उदाहरणोनां मूल * प्रतनी पुष्पिका : संवत १२२४ वर्षे भाद्रपद शुदि ३ बुद्धे महं० चण्डप्रसादेन
सुतयशोधवलस्याऽर्थे लिखिता ।