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फेब्रुआरी - २०१५
प्रतिपादक कहा जाता है और उसे बौद्ध दर्शन का समर्थक बताया जाता है । ऋजुसूत्रनय वर्तमान स्थितियों को दृष्टि में रख कर कोई प्रकथन करता है । उदाहरण के लिए 'भारतीय व्यापारी प्रामाणिक नहीं हैं' यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है । इस कथन के आधार पर हम भूतकालीन और भविष्यकालीन भारतीय व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते । ऋजुसूत्रनय हमें यह बताता है कि उसके आधार पर कथित कोई भी वाक्य अपने तात्कालिक सन्दर्भ में ही सत्य होता है, अन्यकालिक सन्दर्भों में नहीं । जो वाक्य जिस कालिक सन्दर्भ में कहा गया है, उसके वाक्यार्थ का निश्चय उसी कालिक सन्दर्भ में होना चाहिए ।
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शब्दनय नयसिद्धान्त के उपर्युक्त चार नय मुख्यतः शब्द के वाच्य विषय (अर्थ) से सम्बन्धित है, जब कि शेष तीन नयों का सम्बन्ध शब्द के वाच्यार्थ (Meaning) से है । शब्दनय यह बताता है शब्दों का वाच्यार्थ उनकी क्रिया या विभक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नंगर था' और 'बनारस भारत का प्रसिद्ध नगर है! इन दोनों वाक्यों में बनारस शब्द का वाच्यार्थ भिन्नभिन्न है । एक भूतकालीन बनारस की बात कहता है तो दूसरा वर्तमान कालीन । इसी प्रकार 'कृष्ण ने मारा' - इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ कृष्ण नामक वह व्यक्ति है जिसने किसी को मारने की क्रिया सम्पन्न की है । जबकि 'कृष्ण को मारा' इसमें कृष्ण का वाच्यार्थ वह व्यक्ति है जो किसी के द्वारा मारा गया है । शब्दनय हमें यह बताता है कि शब्द का वाच्यार्थ कारक, लिङ्ग, उपसर्ग, विभक्ति, क्रिया-पद आदि के आधार पर बदल जाता है ।
समभिरूढ़नय - भाषा की दृष्टि से समभिरूढ़नय यह स्पष्ट करता है कि अभिसमय या रूढ़ि के आधार पर एक ही वस्तु के पर्यायवाची शब्द यथा - नृप, भूपति, भूपाल, राजा आदि अपने व्युत्पत्त्यर्थ की दृष्टि से भिन्नंभिन्न अर्थ के सूचक हैं । जो मनुष्य का पालन करता है, वह नृप कहा जाता है । जो भूमि का स्वामी होता है, वह भूपति होता है । जो शोभायमान होता है, वह राजा कहा जाता है । इस प्रकार पर्यायवाची शब्द अपना अलगअलग वाच्यार्थ रखते हुए भी अभिसमय या रूढ़ि के आधार पर एक ही