SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८. अनुसन्धान-६६ होते है और कभी असत्य भी होते हैं । अतः यह प्रश्न भी उठ सकता है कि यदि उस कथन के अपवाद उपस्थित हैं तो उसे सत्य किस आधार पर कहा जाय । उदाहरण के लिए यदि कोई कहे कि स्त्रियाँ भीरू (डरपोक) होती हैं तो यह कथन सामान्यतया स्त्रीजाति के सम्बन्ध में तो सत्य माना जा सकता है किन्तु किसी स्त्रीविशेष के सम्बन्ध में यह सत्य ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं है । अतः संग्रहनय के आधार पर किये गए कथन जैसे - भारतीय गरीब हैं अथवा स्त्रियाँ भीरु होती हैं, समष्टि के सम्बन्ध में ही सत्य हो सकते हैं, उन्हें उस जाति के प्रत्येक सदस्य के बारे में सत्य नहीं कहा जा सकता है । यदि कोई इस सामान्य वाक्य से यह निष्कर्ष निकाले कि सभी भारतीय गरीब हैं और बिडला भारतीय है, इसलिए बिडला गरीब है, तो उसका यह निष्कर्ष सत्य नहीं होगा । सामान्य या समष्टिगत कथनों का अर्थ समुदाय रूप से ही सत्य होता है । यह समष्टि या जाति के पृथक्पृथक् व्यक्तियों के सम्बन्ध में सत्य भी हो सकता है और असत्य भी हो सकता है। संग्रहनय हमें यही संकेत करता है कि समष्टिगत कथनों के तात्पर्य को समष्टि के सन्दर्भ में ही समझने का ही प्रयत्न करना चाहिए और उसके आधार पर उस समष्टि के प्रत्येक सदस्य के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए । व्यवहारनय - व्यवहारनय सामान्यगर्भित विशेष पर बल देता है। व्यवहारनय को हम उपयोगितावादी दृष्टि भी कह सकते हैं। वैसे जैन आचार्यों ने इसे व्यक्तिप्रधान दृष्टिकोण भी कहा है । अर्थप्रक्रिया के सम्बन्ध में यह नय हमें यह बताता है कि कुछ व्यक्तियों के सन्दर्भ में निकाले गए निष्कर्षों एवं कथनों को समष्टि के अर्थ में सत्य नहीं माना जाना चाहिए । साथ ही व्यवहार नय कथन के शब्दार्थ पर न जाकर वक्ता की भावना या लोकपरम्परा (अभिसमय) को प्रमुखता देता है । व्यवहार भाषा के अनेक उदाहरण हैं । जब हम कहते हैं कि घी के घड़े में लड्ड रखे हैं यहाँ घी के घड़े का अर्थ ठीक वैसा नहीं है जैसा कि मिट्टी के घड़े का अर्थ है। यहाँ घी के घड़े का तात्पर्य वह घड़ा है जिसमें पहले घी रखा जाता था। ऋजुसूत्रनय - ऋजुसूत्रनय को मुख्यत: पर्यायार्थिक दृष्टिकोण का
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy