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________________ फेब्रुआरी - २०१५ १२१ नयों की अवधारणा को लेकर जैनाचार्यों ने यह प्रश्न उठाया है कि यदि वक्ता का अभिप्राय अथवा वक्ता की कथनशैली या अभिव्यक्तिशैली ही नय है तो फिर नयों के कितने प्रकार होंगे? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य सिद्धसेन द्वारा कहा गया है कि जितने वचनपथ (कथन करने की शैलियाँ) हो सकती है, उतने ही नयवाद हो सकते हैं । वस्तुतः नयवाद भाषा के अर्थ-विश्लेषण का सिद्धान्त है । भाषायी अभिव्यक्ति के जितने प्रारूप हो सकते हैं उतने ही नय हो सकते हैं, फिर भी मोटे रूप से जैन दर्शन में दो, पाँच और सप्त नयों की अवधारणा मिलती है । यद्यपि इन सात नयों के अतिरिक्त निश्चय नय और व्यवहार नय तथा द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय का भी उल्लेख जैन ग्रन्थों में है, किन्तु ये नय मूलतः तत्त्वमीमांसा या अध्यात्मशास्त्र से सम्बन्धित है। जबकि नैगम आदि सप्त नय मूलतः भाषा-दर्शन से सम्बन्धित है। नय और निक्षेप दोनों ही सिद्धान्त यद्यपि शब्द एवं कथन के वाच्यार्थ (Meaning) का निर्णय करने से सम्बन्धित है, फिर भी दोनों में अन्तर है । निक्षेप मूलतः शब्द के अर्थ का निश्चय करता है, जबकि नय वाक्य या कथन के अर्थ का निश्चय करता है । जैन दर्शन में नयों का विवेचन तीन रूपों में मिलता है – (१) निश्चयनय और व्यवहारनय (२) द्रव्याथिकनय और पर्यायार्थिकनय तथा (३) नैगमादि सप्तनय । भगवतीसूत्र आदि आगमों में नयों के प्रथम एवं द्वितीय वर्गीकरण ही वर्णित हैं, जबकि समवायाङ्ग, अनुयोगद्वार, नन्दीसूत्र एवं तत्त्वार्थसूत्र में नयों का तृतीय वर्गीकरण नैगमादि के रूप में पाया जाता है, इसका भाष्यमान्य पाठ नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र एवं शब्द ऐसे पाँच नयो का उल्लेख करता है, जबकि सर्वार्थसिद्धिमान्य पाठ नैगम आदि सात नयों का उल्लेख करता है । निश्चय और व्यवहार नय मूलतः ज्ञानपरक दृष्टिकोण से सम्बन्धित है । वे वस्तुस्वरूप के विवेचन की शैलियाँ है, जबकि द्रव्यार्थिक और पर्यायर्थिक नय वस्तु के शाश्वत पक्ष और परिवर्तनशील पक्ष का विचार करते है । सप्त नयों की चर्चा में जहाँ तक नैगमादि प्रथम चार नयों का प्रश्न है वे मूलतः वस्तु के • सामान्य और विशेष स्वरूप की चर्चा करते हैं । जबकि शब्दादि तीन नय
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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