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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
इकवीसमा नमिनाथनें वारें दसमो थयो, हरिषेण चक्रवर्ति सत्ताणुं सय पद जयो, रेवती नक्षत्र आदि येष्टा ते तिम गुणी, तारा संख्या जाण अठाणुं इम भणी. ३ मेरु पर्वत भूम जोयण निनाणुं अछ, ऊंचो अधिको सहस संख्या सास्त्रमै अछ, तारा संख्या एम नक्षत्रे सतभिखा, तेह तणो परिमाण भाखै गुरु जिन सारिखा. ४ बीजे देवलोकै भूमि ए अधिकी दोय सै, तेह तणो परिमाण भाखें गुरुजी तिसै, जंबूद्वीप दोय अधिक दोयसै सही, तीर्थ तणो परिमाण कहयो क्षेत्रथी लही. ५ प्रकृत कही अभिधांननी अधिक तीन इकसते, कर्मग्रंथमें एह संख्या छै सही मतें, च्यारे दिसिना च्यार विमान अनुत्तरें, भाखै छै गुरु भेद सिद्धांतने अनुसरें. ६ सहस्रारे सुरलोकनी संख्या सहि मनै, पंच अधिकने एकसो सास्त्रमैं सुभमतै, बोलै गुरु मुखबोल भविक श्रुत सांभलें, भिन्न भिन्न करि भेद कहै ज्युं आपलै. ७ छठो सत्यप्रवाद नांमै पूरव कयो, तेह तणो परिमाण एककोडि रस(६)पद लयो, मज्झम ग्रैवेक चैत्य संख्या किण पर कही, अधिक सप्तने एकसो साखथी लही. ८ सूरीश्वर जैनेंद्र सदा अहिनिसि जपै, सूरिमंत माहामंत्र जप्या सवि कारम खपै], अष्टोत्तर जपमालकै मणीय सिद्ध करी, पामै ते गुरुराज अष्ट सिद्धनें इम वरी. ९
सोहम-जंबू-पाट परम-दीपावता, सुजस तणा गुणखांण अधिक मन भावता, पूरव पुण्य प्रमाण पायो छै पटकरु, श्रीतपगछनो सिररूपकै मानुं रति समवरु. १० अष्टोत्तर गुण एम के गुरुना में कह्या, स्तवता मंगलमाल सदा मन गहगह्या, गुणरत्नाकर माल विनयविजय कही,
चोथी ढाल रसाल के नवें निधि सुख लही. ११ श्लोक : असिति(त)गिरिसम(म) स्यात्०॥ १
अवर तिण देसै पुर घणां, पिण सहु जग-प्रसिद्ध, पाटण सैहर दीप सदा, इंद्रपुरी सम रिद्ध. १ पवित्रकरण पंचम अरै, जंगम सुगुरु-जिहांज,
श्रीविजयजिनेंद्रसूरीश्वर, जिहां विचरें मुनिराज, २ ॥ अथ ढाल ॥ चंद कहै राणी सुणो है कै साजन, टिण रित मेहकै...
वली चंदनी हे - ए देशी ॥ संदर मरति सोहती रे साजन, दीठां आवै दाय के तन मन रंगस्यु ए, वंदो श्रीविजयजिनेंद्रसूरिंद कै, तन-मन रंगस्युं ए [ए आंकणी] १ चतुर नमो गुरुचंद्रमा ए साजन, नित नित चढतें नूर [कै] तन-मन रंगस्यु ए छ दस कलाए सोहतो ए साजन, चढ्यो पुण्यअंकूर कै तन-मन रंगस्युं ए.२ कुमतितिमिर दूरै करै ए साजन, पूरै समीहित आस कै तन-मन रंगस्युं ए, तारा जिम अन्य तीरथी ए साजन, अधिक न तास उजास कै तन. ३ जिनशासनसमुद्र उल्लसै ए साजन, सुमतिरयणी सुखकार कै तन-मन रंगस्युं ए, हरखित श्रावक श्राविका ए साजन, कुमुद अनें कासार कै तन-मन रंगस्युं ए. ४ अमृतपूरै झरै देसना ए साजन, संयमओषधि सुख एह कै तन-मन रंगस्युं ए, आनंदित दिस दिस थइ ए साजन, कुमतिवियोगणीदुख कै तन-मन रंगस्युं ए.५ नित्य उदय जाणीयै ए साजन, राहु तणै वसि नांहि कै तन-मन रंगस्युं ए, जलधर पिण नही ओलवै ए साजन, कलंक नही इण मांहि कै तन-मन रंगस्युं ए.६