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________________ नवेम्बर - २०१४ १०३ १०४ अनुसन्धान-६५ छाजै बलूंदै "छतरी, हर्ष आंणीनै पूजो हितरी हो, सदगुरु...... पाली नगर थे पेखो, दूजो कैलास सही देखो हो, सदगुरु..... ७ पंच देहरा तिहां पूजो, एहवी नही छै दूजो हो, सदगुरु..... सौझित सेहर सवायौ, आप जनम तिहां ही ज पायो हो, सदगुरु..... ८ मात गुमानदेजाया, पिता हरचंद नवनिधि पाया हो, सदगुरु..... वाघरेचा गोत्र विराज, ओशवंशमै अधिक ही छाजै हो, सदगुरु..... ९ दरसण साहिब देज्यौ, जन संतोषै जस लेज्यो हो, सदगुरु..... गुरु भक्तिविजय सुपसावै, कवि मनरूप गुण नित गावै हो, सदगुरु..... १० ॥ इति गुरुविज्ञप्तिज्ञेयम् ॥ तत्रत्य पं. विद्याविजयजी, पं. माणिक्यविजयजी, पं. फतैविजयजी, पं. जीतसागरजी, पं. रामविजयजी, पं. दोलतविजयजी, समस्त साधांसु १०८ वार वंदणा अवधारसीजी । अत्रत्य पं. मनरूपविजय, पं. कमलविजय, पं. ऋषभविजय, पं. चतुर्विजय, पं. बुद्धिविजय, पं. विद्याविजय, उमेदविजय, भगवानविजय, रंगविजय, मोहनविजय, भावचारित्रीया शिष्य रलचंद, अगरचन्द, पनालाल, दीपचंद, ऋद्धिकरण समस्त ठाणु १५री वंदणा व० ॥ श्रीगोडीजी सत छै जी ॥ ॥ समस्तश्री रतलाब सुथाने पुज परमपुज सरब ओपमा बीराजमान, अनेक ओपमा लायक, पुजश्रीभटारक सकल भटारकपुरंदर भटारकजीश्री १०८ श्रीवीजेयजीनद्रसूरीश्वरजी चरणकवलायसु जोधपुरथी सदा अग्याकारी समसत सिंघ लीखावत् बंदण १०८ वार अवधारसीजी. अठारा समाचारश्री ........ जी रा तेज परतापसु भला छै । आपरा सदा आरोग चाहीजे । आपरा डीलारा घणा जतन करावसी । सारी "मुदार आपरा डीलासु छ । सुजतनतो श्रीगोडीजी करसी पण सिघने तो लीखीयो चहीजे । अप्रंच पनीयास मनरूपबीजेजी, रीखबवीजेजी आपरी आग्यास अठे चोमासे मेलीया । सो बोत जोग्य हे ने धरम धानमें बोत परवीण छै। सु जोधपुररा चोमास लायक छै। बीजु उपासरे वखाण श्रीरायपीसेणी सुत हुवे छै । सीजझाय श्रीजंबुदीपपनतीरी हुवे छै। धरमनी मरजाद आछीतरे "सुगछी परगछी सरब आवे छै । श्रीजीरी आग्य अखंड पाले छै । ओर उपासरारी मरमत हुय गई छ । रीपीआ २३५) लाग गया है। और पीण खोटो भागो "टुटी सुधर गयो छ । एकण "कानीरो भीतरो काम "रयो छ । सो "हयजासी। सो पुनीयासजी मनरूपबीजेजी घणा वरसस् चोमासे आया छै। सु अबरके तो चादर पीछेवडीरी चकरी खण(?) सींघस कीहई आई नही सो अबरके चोमासे ईणने हीज रखावसी । ईणमे गछरो उदोतपणो नीजर आवसी। मारी पीण सारा सींघरी मरजी छै, ने ईणसु सींघ बोत परसन छै सु अबको चोमासो तो सारा सींघरी अरजसु ईणने ही ज ईनामत करावसी । ईतर अरज जरूर मंजुर करावसी, ओर मनरूपवीजेजीरी तरफरी जीती बीरती... ईधकी ओछी कहे सु नही मनावसी । ओ बड़ा जोग छै । नीगरभी'८ छै। मारगरा चलणवाल छै। ने चीत्र लेखमे लीखो छे सु आप वचासी ने धरम ध्यान रे अवसर सिंघने आद करसी । दूहा : सिंघ समस्त इहां थकी, लिखे लेख श्रीकार, त्रिविध त्रिविध कर वंदना, अवधारो गणधार. १ धर्मध्यांन इहां पण घणा, नित नित नवला नेह, ओच्छव मोच्छव अभिनवा, कहिता नावै छेह. २ परब पजूसणपारणा, सांहमीवछल सार, आडंबर अधिका थया, परिघल अनेक प्रकार, ३ छठ अठम पनरे दशम, मासखमण तप-नेम, थया अनेक ईहां किणे, नित अधिका ध्रम ने[ते]म. ४ पोसह पडिकमणा तणो, नित नित अधिका नेम, दया-धर्म नित नित नवौ, धर्मध्यांन वलि तेम. ५ निराबाध सुण(ख) तप तणा, श्रीजीना सुखकार, समाचार श्रीसंघनै, देज्यो धरि अति प्यार. ६ जिम इहां संघ समस्तनै, ऊपजै अधिक आणंद, पूज्य तणां परभावसुं. नित नित हुवै सुखकंद. ७
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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