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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ ॥ अथ श्रीवीरवर्धमानस्तुतिः ॥ वीरः स्वामिन् कनकशिखरे स्नानकाले घटाना, समोच्चन्ता जलदसदृशि वारिधारः सुराणाम् । इन्द्रेणोक्तं क्षिणमपि स्थिरं कम्पितं तद्दिरिन्द्रं, पादाङ्गुष्टां परिमतिगिरि चम्पितं तत्समेतम् ॥५।। विश्वश्वोट चलति गिरयः कूटविन्दा(वृन्दाः) पतन्ति, क्षम्भा प्राप्ता जलधिरखिलनक्रचक्रासमूहः । कण्ठे लग्ना सुरवधु विभो इन्द्र चित्तं विधत्ते, त्वं वन्देऽहं प्रबल बलवान्, क्रियतां जन्महर्षम् ॥६॥ ॥ अथ श्रीमाणिभद्रस्तुतिः ॥ श्रीमाणिभद्रं सुरयक्षराजं, सौख्यप्रदं विघ्नहरं नराणाम् । जिनेन्द्रसूरि(रे)जयकारि नित्यं, रिपुक्षयं सङ्घसुखं(ख)प्रदो मि(मे) ॥७॥ ॥ इति मङ्गलाचरणप्रशस्तिकाव्यानि ॥ अथ दूहा : स्वस्तिश्री आदीसरु, धरै धरा उतपन्न, नमत सुकवि इंद्रादिपद, काया 'हाटक-वन्न, १ संकर जिनसासन-सुखद, अचिरासुत श्रीशांति, पदवी त्रय एक ही भवे, पाम्या परम-महंत. २ जादवकुलअवतंस प्रभु, माधवमोद हरंत, पूर संख पंचाइणौ, संतन हरख धरंत. ३ पारस पारससें भये, वंस इक्ष्वाकुहि माहि, कुकर्म लोह कंचन करे, अधग उधार साहि. ४ नमत-सुरासुर-मुकुटयुत, प्रतिबिंबन-नख-माल, इंद्रवधु-आभा प्रगट, महावीर "रिछपाल. ५ माता तुं ब्रह्मसुता, वरदवरण वर देय, 'दग्ध निकंदन कारणे, शक्त नमण कर लेय. ६ पंचतीर्थ सुगुरु गिरा, हाथ जोड शिर न[मा]य, सुन रींगै सज्जन सुकवि, लिखुं लेख सुखदाय. ७ इति भद्रम् ॥ ॥ अथ मालवदेशवर्णनम् ॥ मोटा मालव देशमै, तीरथ दोय उद्योत, अयवंती मगसी उहां, सदा जागती जोत. १ श्रीमद्दौलतराव कै, राज करै मनरंग, 'मरहट्टे मोटे मरद, जबर जीतवा जंग. २ ॥ तो छंदजाति पद्मावती ॥ मालव धर सोहत, सब जन मोहत, कोडि-ध्वज वाणिज्य-धरा, लांबा परलेखा, पुण्य विशेषा, "भ्रमरत्ता जिनराज तणा, सिर सोहै मुगटी, सुंदर 'सुघटी, 'लावनता धारै, तिण देश मझारे, पूज पधारे, अरज वधारै मनुहार. १ पहिरण पाटंबर, झीणा अंबर, डील डिगंबर दूंदाला, पचरंगी बोरी, लटकन दोरी, रेसम-नाडा फूंदाला, "वह-नार सुरंगी, नैन-कुरंगी, लख लख लोक फिरै लारै, तिण देश मझारे, पूर्ण पधारे, अरज वधारै मनुहारै. २ शुभ श्रावक भावी, पुज्य वधावी, सुखसेती मंगल गावै, नित नेम वितारै, आगम धारे, सुदेव गुरु वंदन आवै, निज कुल संभारे, अरथ विचारै, द्वादश व्रत मन सुध धारै, तिण देश मझारे, पूज पधारे, अरज वधारै मनुहारै. ३ श्रावक सुविनीता, देश-वदीता, सदगुरु-भक्तें भाव घणा, तामे वली खासा, पूरण-आसा, सोहै इम रतलाम तणा, कवि वरणें केता, गुणां-उपेता, लाभ लीहंता नहि हारै, तिण देश मझारै, पूज पधारे, अरज वधारै मनुहारै. ४ घर हाट हवेली, सुंदर मेहली, पोल पोल तोरण छाजै, अति मोटा देहरां, सुंदर सेहरा, दंड-पाट सफरी राजै, सौलम जिन ध्यान, नवनिध ठाने, वाजै नोबत गुंभार, तिण देश मझारे, पूज पधारे, अरज वधारै मनुहारै. ५ राजे तिहां राजा, चढत दीवाजा, पर्वतसिंह तिहां राज करै, विष्णुं कुं सेवै, लावा लेवै, क्षत्रीधर्मसुं चित्त धरै,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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