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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
(११) उदयपुरस्थित-विजयधर्मसूरिजी पर मंगलपुरथी हरिविजयजीनो पत्र
ओसवंसे हो राजि अनुपम ओपतो जी महिमानिधि गणशिणगार पुण्यवंता जी. १० पूज्य..... श्रीविजय हो राजि दयासूरिपाटि पटोधरूं जी श्रीविजयधर्मसूरीस गुणवंता जी, एह विनती हो राजि मनमे अवधारिने जी पूरो मननी संघ जगीस पुण्यवंता जी. ११ पूज्य..... घणु फिरी हो राजि वीनवइ किस्यूं जी, तुमे जाण छो चतुर सुजाण गुणवंता जी, पंडित रूपनो हो राजि मोहन इम कहे जी, करज्यो वीनती प्रमाण पुण्यवंता जी. १२ पूज्य.....
॥ इति विज्ञप्तिभासः ॥
घणा विज्ञप्तिपत्रोमां मळता 'स्वस्ति श्रीसदनं'ना श्लोक पछी अन्य ३ पद्यो वडे कवि प्रस्तुत विज्ञप्तिपत्रनुं मङ्गलाचरण करे छ. उदयपुरमा बिराजमान श्रीविजयधर्मसूरिजीने उद्देशीने मंगलपुरीथी प्रस्तुत पत्र लखायो छे. शरुआतना पद्योमा उदयपुरनी बाह्य समृद्धिनुं वर्णन करीने कविए सिद्धाचलतीर्थनी सुन्दर स्तवना करी छे. पत्र सोरठ (मंगलापुरी - हाल- नाम मांगरोळ) देशमाथी लखायो होइ हवे पछीनां पद्योमां कविए सोरठ देशनो तादृश चितार ढाळ्यो छे. एक-एक पद्य कविनी काव्यशक्ति माटे मान उपजावे तेवू छे. गुरुभगवन्तनी सरखामणी दरिया साथे करतां पद्योनी त्यार पछीनी ढाळ खरेखर अद्भुत छे. दरियानी एक-एक विशेषता- अहीं गुरुभगवन्तना पक्षे सुन्दर आलेखन थयुं छे. कवि पोते चातुर्मास मंगलापुरीमा बिराजमान हता तेथी त्यां चातुर्मासमां केवी केवी आराधना थइ तेनुं वर्णन करी पूज्यश्रीने चातुर्मास पधारवा विनंती करे छे. साथे आपना अहीं पधारवाथी श्रीसंघमां कई कई आराधना थशे तेनो संक्षिप्त अहेवाल पण कविए आप्यो छे. कृतिना अन्ते पोतानुं अने पोताना गुरुना नामोल्लेख साथे पत्रनुं कविए समापन कयु छे.
स्वस्तिश्रीसदनं निरस्तमदनं कल्याणसम्पादनं, विश्वानन्दनिदाननन्दनवनं सिद्ध्यध्वनि साधनम् । वाचाचन्दनन्दनं सुरदनं वामासतीनन्दनं, वन्दे विघ्ननिषूदनं नुतसुरश्रेणीसदावन्दनम् ॥१॥ स्वस्तिश्रीकमलाकरं शिवकरं गाम्भीर्यरत्नाकर, श्रेयःपद्मदिवाकरं सुहृदयं ज्योत्स्नाप्रियोषाकर(रम्) । कामध्वंसनशङ्करं कजकरं विश्वैकरक्षाकरं, पार्श्व सौख्यकरं सदा हितकरं ध्यायाम्यहं शङ्करम् ॥२॥