SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विज्ञप्तियत्र विशेषा - 7 ४ समावायेला पत्रोनी मां परिचयात्मक भूमिका आशरे बे वर्ष अगाऊ एक सङ्कल्प थयो के विज्ञप्तिपत्रोनो अङ्क करवो छे. ते वखते एम हतुं के बे-एक भागमां पत्रो समाई जशे. परन्तु जेम जेम काम थतुं गयुं, तेम तेम पत्रो पण वधु ने वधु प्राप्त थता गया. एटले बेने बदले ४ भागमां पत्रोनुं संकलन करी शकायुं. प्रथम बे भाग (अङ्क ६०-६१ ) मां संस्कृत पत्रो प्रगट थया छे. त्रीजा भागमां (अङ्क ६४ ) संस्कृत गुर्जर पत्रोनो समावेश थयो छे. अने हवे प्रगट थता आ चोथा भागमां मात्र गुर्जर भाषाना पत्रोनुं संकलन थयुं छे. 'गुर्जर' नो अर्थ 'मारु-गुर्जर' करवानो छे. आ अङ्कमा समावायेला ३५ जेटला पत्रोनो अछडतो परिचय आ प्रमाणे छे : + (१) प्रथम पत्र प्रख्यात महोपाध्याय श्रीविनयविजयजीए गच्छनायक श्रीविजयदेवसूरिने लखेलो, नानोशो पत्र छे. सं.प्रा. भाषाओमां विद्वत्तासभर ग्रन्थोनी रचना करनार तेमज इन्दुदूत जेवा खण्डकाव्यात्मक पत्रो लखनार कवि, आम एकदम लोकभोग्य भाषामां काव्यमय पत्र लखे ते पण एक नावीन्य छे. वळी, सम्भवतः आ पत्रनी बे पानांनी प्रति पण तेमना स्वहस्ताक्षरमां लखायेल जणाय छे. खम्भातमां अनेक चैत्यो परापूर्वथी हतां, छे. ते पैकी सुखसागर पार्श्वनाथ, कंसारी पार्श्वनाथ, जीराउला पार्श्वनाथ अने चिन्तामणि पार्श्वनाथ एम चार तीर्थचैत्योनो नामोल्लेख कविए कर्यो छे, परन्तु हालमां त्यांना तीर्थपति मनाता स्तम्भन पार्श्वनाथनुं नाम सुद्धां नथी, ते ध्यानार्ह छे. - गुरुनुं गुण-वर्णन करतां कविए करेला कल्पना-विहारनी एक झलक जुओ : कवि गुरुना प्रतापने आम वर्णवे छे - "मीणनी जेम कारमा - कृत्रिम फटाटोप - देखाव धरीने जे अवतर्या छे ते, तमारा प्रतापरूपी सूर्यना तापे गळी जई नष्ट थवाना छे" (१९). कडी २४मां 'अम्ह चरण तुम्हारा त्राण रे' एम पद छे तेनो अन्वय 'तुम्हारा चरण अम्ह त्राण' ए प्रमाणे करवानो छे. 'संवत सत्तर पंचोत्तरे' (क. 8 २७) नो अर्थ १७७५ नहि, पण १७०५ करवो उचित छे. (R) आ पत्र पण घणो नानो पत्र छे. पण तेनी प्रासादिक काव्य रचनाने कारणे ते एक मधुर रचनारूप पत्र बन्यो छे. पण्डित कमलविजयजीना शिष्य पं. उदयविजय नामना कविए महाराष्ट्रना अहमदनगरथी श्रीपुर (शिरपुर) बिराजता गच्छपतिने आ पत्र लख्यो छे. १७मी कडीमां 'उदयविजय आसीस' एवो शब्द जोवाथी 'उदयविजयनी आशीषथी लखायेल होई आ पत्र तेमना शिष्ये लख्यो छे' एम मानवा मन ललचाय. तो १४मी कडीमांना 'अहमदानगर मोझार' एवा प्रयोगथी 'अहमदावाद'नी कल्पना पण थई शके. परन्तु वास्तवमां तेम नथी. आ पत्र उदयविजये ज लख्यो छे, अने 'अहमदावाद' नहि, पण 'अहमदनगर' थी लखेल छे, ते झीणवटथी तपासतां स्पष्ट थाय छे. कविनी काव्य- चमत्कृति पण हृदयङ्गम छे. कडी ७-११ मां गुरु-गुणनुं जीभ वडे वर्णन के कागळमां लेखन करवानुं अशक्य होवानुं वर्णन कविए केली मीठी शैलीथी आप्युं छे! "तमारा गुण बहु मोटा होय छे; तेनी सामे दि' (दिवसो) साव नाना; एमांय रात तो अंधाराने कारणे गणाय ज नहि; वळी एवडा मोटा गुण लखवा माटे मोटा कागळ जोईए, पण अहीं तो ते पण साव सांकडा पडे छे ! गुण लखवा तो लखवा शी रीते ?" (७). "कागळ धरती जेवडो मोटो होय, स्याहीनो दरियो भर्यो होय, रात-दिवस सतत तमारा गुण लख्ये ज जडं (८); तेमां वळी इन्द्र जेटलुं मोटुं मारुं आयुष्य होय, कलमरूपे स्वर्गनो दिव्य दण्ड होय, अने सूर्य आठे प्रहर आथम्या वगर अजवाळां रेलावतो रहे, तो कांईक पत्तो लागे ! (१०). " कविनो आ कल्पनाविस्तार केवो सोहामणो छे ! (३) मात्र 'दूहा' छन्दमां लखवामां आवेलो आ पत्र माणिक्यचन्द्र नामना कवि-साधुए गच्छपति विजयदेवसूरि उपर लखेल छे. सं. १६७८मां लखायेल आ पत्र क्यांथी लखायो तथा क्यां मोकलायो, ते विषे आखा पत्रमां कोई उल्लेख नथी मळतो. वाचनदोषने कारणे 'माणिकसीस' एम पण वंचायुं छे, अने तेथी
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy