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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ (८) राधनपुरस्थ-श्रीविजयधर्मसूरिजीने मेदनीपुरथी सत्यसागरजीनो पत्र प्रस्तुत विज्ञप्तिपत्र विजयधर्मसूरिजी उपर लखायेल अन्य विज्ञप्तिपत्रो करतां थोडो मोटो अने सौथी सुन्दर विज्ञप्तिपत्र छे. विज्ञप्तिपत्रमा आलेखातां तत्कालीन वर्णनो तेमज ऐतिहासिक बाबतोने अहीं विशेषे समावाई छे. कवि काव्यरसना जाणकार होई कृतिने विविध छन्दो, अलङ्कारोथी रसप्रचुर बनाववामां पण सफळ थया छे. शरुआतनां पद्योमा इष्ट परमात्माने नमस्कार करी सौ प्रथम गुर्जर देशनुं वर्णन, पछीनी ढाळोमां अनुक्रमे गुजरातमां थता व्यापारनु, देशनी प्रजानु, गुजरातना तेमांय जैन प्रजाना मुख्य तीर्थ शत्रुजय तथा गिरनारनु, विजयधर्मसूरि ज्यां बिराजमान छे ते राधनपुर नगरनु, त्यांना सुलतान गाजीमखाननु, गुरुभगवन्तना गुणोनु, कवि पोते बिराजमान छे ते मरुधर देशना मेदनीपुर नगरनुं तेमज त्यांना महाराज विजयसिंहर्नु इत्यादि वर्णनो कवि सुन्दर रीते वर्णवे छे. कविनी वर्णनशक्ति खरेखर दाद मागे तेवी छे. अन्त्य ढाळोमां चातुर्मासनी आराधनानुं वर्णन तेमज श्रीसङ्घनी गुरुभगवन्तनी पधरामणीनी आतुरतानुं वर्णन अद्भुत छे. एकंदरे सम्पूर्ण कृति विद्वद्भोग्य छे. श्रीगिरेंनारिं गिरें थयां, दिक्षा ज्ञांन निरवांण, धर्मचक्री प्रणमुं सदा, नेमिसर जिनभाण ६ स्वस्तिश्रीरमणितिलक, केवलकमलाकंत, शिवसुंदरिनो साहिबो, विघन कोडि हरंत ७ वामारांणिकुंखिसर-राजहंस जिनचंद, अश्वसेनअंगज सदा, वंदु पासजिणंद ८ स्वस्ति[श्री] शासनधणि, वर्धमान भगवंत, केवलज्ञानदिवाकरु, अतिसयवंत महंत ९ सिद्धारथकुलकेसरि, त्रिसलादेविनंद, सिंहलंछन पय सोहतो, वांदु वि(वी)र जिणंद. १० श्रीऋषभजिनेश्वर शांतिजिन, श्रीनेमि(मी)श्वर पास, वर्धमान जिनवर चरण, प्रणमुं मन उल्लास. ११ ढाल - प्रथम ॥ श्रीआदिश्वर वीनवं रे - ए देशी ॥ सकल देस देसां शिरे रे [लाल], गर्जरदेस समद्ध सुखकारी रे, घण कण कंचन पुरीयो [२] लाल, अमरपुरी ज्युं प्रसिद्ध सुखकारी रे. १ गुर्जर देस सोहांमणो रे लोल जंबुद्वीपना भरतमां रे लाल, सोहें घणुं श्रीकार सुखकारी रे, अवर देस अनुचर सदा रे लाल, गुर्जरदेस सिरदार सुखकारी रे. गुर्जर देस सोहांमणो रे लाल २ सुरसरिता जिम सोहति रे लाल, नदीयां निरमल नीर सुखकारी रे, तीर तरंग विहंगसु रे लाल, सितल जिहां समीर हित(सुख)कारी रे. ३ पग पग पाणि पंथमें रे [लाल], वड जिम मोटा वृक्ष सुखकारी रे, सितल जल छाया सदा रे लाल, पंथी पांमें सुख सुखकारी रे. ४ सालि तणा खेत संपणे रे [लाल], नीका३ भरीया नीर सुखकारी रे, पाका आंबा तोडता रे लाल, केल करे बहु कीर४ सुखकारी रे. ५ गिरिवर कंचनगिरि जसा रे [लाल], उन्नत सिखर आकास सुखकारी रे, निझरणां नदियां वहे रे लाल, षट ऋतु बारें मास सुखकारी रे. ६ गछपतिने लेख लिख्यानी विधिः स्वस्तिश्री सुखसंपदा-दायक देव दयाल, सुखदाई समरूं सदा, ऋषभजिणंद कृपाल १ सेजेजगिरिनो साहिबो, नाभिनंदन सुखकंद, शिवमारगदायक मुदा, प्रणमुं प्रथम जिणंद २ स्वस्तिश्री जिन सोलमो, मनवंछितदातार, शांतिजिनेश्वर नित नमुं, पंचम चक्री सार ३ मेघरथराजा-भवे, सरणे राख्यो जीव, जीवदयागुण-कारणे, प्रणमुं तास सदीव ४ स्वस्तिश्री यादवतिलक, राजिमति-भरतार, सांमलवरण सोहांमणो, शिवादेविमात-मल्हार ५
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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