SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवेम्बर २०१४ कृपा- सुदृष्टि सेवकोपरं राखो, गुरु आवी उपदेश दाखो रे, म्हारा... सूरति आवी ज्ञानरस चाखो, वीनती करूं त्रिकरण साखो रे, म्हारा...... १३ सुरति सहर छे अति वारू, जोतां दीसें छें दीदारू रे, म्हारा...... बंदिर शुभ शोभा धारू, सुकृत पुण्य तणुं भंडारू रे, म्हारा...... १४ श्रीविजयदयासूरीश्वरपटधारी, श्रीविजयधर्मसूरि सुखकारी रे, म्हारा.... वीनती करी सेवके मनोहारी, महेंरबानी राखो मुझ सारी रे, म्हारा... १५ गुरू प्रतपो क्रोड वरिस, रवि इंदु ध्रुअ लगि ईस रे, म्हारा...... इम पभणें रामविजयनो शीस, सुजांणनी पूरो जगीस रे, म्हारा..... १६ ||ढाल || टूक अने टोडा विचें रे, मेंदी तणा दोय रूख रे मेंदी रंग लाग्यो ०ए देशी ॥ श्रीसूर्यमंडन पासजी, श्रीधर्मनाथ पूरे आस गिरूआ गछपति [आंकणी ] श्रीगोडीप्रभु पासजी, श्रीसंखेश्वर करे दुखनास गिरूआ १.... मोहनगारी मूर्ति, दीठडें पातिक जाय गिरूआ ..... गुरु आवो देव जूहारवा, सेवक जन सुख थाय गिरूआ... २ वांणी अमृतश्रावणी, निसुणी मन हरखंत गिरूआ....... तुम्हे सूरीश्वरसेहरू, प्रगटें धर्म अत्यंत गिरूआ...... तुम आव्यें उद्योत थस्यें, वधस्ये पुन्यभंडार गिरूआ ...... ए सूरतिना संघनी, वीनतडी अवधार गिरूआ...... ३ सूरतबंदिर पधारयो, अवश्य अवस्यें गुरुराय गिरुआ... रांमविजय सुपसायथी, सुजांणविजय गुण गाय गिरू..... अथ कलस : इम सकल सुखकर दूरित-दुखहर, प्रगट्यो पुण्यदीवाकरू, जसवाद आखें देश-प्रदेश भाखें, सुयश दिशो दस मनोहरू, श्रीविजयदयासूरीश्वरपट्टधारी, श्रीविजयधर्मसूरीश्वरू, भविक भावक ग्यानप्रभावक, तपगछमंडण सुरगुरू, श्रीसूर्यमंडणपासपसाई, संधुण्यो श्रीविजयधर्म अलवेसरू, श्रीसूरतिसंघनी वीनती, श्रीगुरु मांनीई कृपा करू, संवत अढारसें त्रेवीसें (१८२३), रही सूरति चउमास ए रामविजय सुपसायें गायो, सुजाणविजय सुविलास ए. १ ॥ इति गुरूस्वाध्याय ॥ ३१ ३२ अनुसन्धान- ६५ ऐं । छप्पर । तुं तपगच्छपति धन्य अन्य कुण तुम्ह सम कहीई, चोरासी गणमांहि ईस को अवर न लहीई, क्षमा दया- गुणपात्र जात्र तुमची सहु चाहें, महिअल अधीक प्रताप पसर्यो चिहुं दिस मांहें, अवीचल ध्रु-तारा लगई तुं प्रतपें तपगछधणी, सकल समीहित पूरवा सेवकजननें सुरमणि || अपरं च श्रीपूज्यजीने श्रीसुरतिनो संघ रात्रि - देवसी पा[खी चाउमासी] संवछरी प्रमुख पांचें पडिक्कमणें करी उब्भु......
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy