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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
लेख-संदे[श] तुं लावणे, देईस सोवनजीह, फुनि मनवंछित जे हुस्यइ, आपीस नित नित दीह. ३७ संवत सोलअठोत्तरी (१६७८), प्रथ[म] आसाढ रविवार, एणि वरसे लेख नीपनो, हरख धरी निरधार. ३८ भवि भवि सेवा ताहरी, हुं वंछु जगदीस, थोडे घणुं तुम जायणो, तुं छे माहरो ईस. काम-काज कहीवयो, श्रीगुरु मननि खंति, लेख लखित वांची करी, धरयो मुझ परि चिंति. कवि माणिकससि रीझवा, लिखिओ कागल एह, अधिकुं ओर्छ जे लख्युं, खमज्यो साहिब तेह.
इति लेख: सम्पूर्णः ।। सज्जन तुझमां गुण घणां, अवगुण एक अपार, नेह लगाडी माणसां, मारइ विणु हथीआर, सज्जन मोती झुमखु, मन परवाली वेल, काआ(या) सरीखो दोरडो, कंठ करेवा हार, २ ॥छ।
पंडितसिरोमणी पंडितश्रीश्रीश्रीश्री५ श्रीसंघविजयगणि ततशिष्य मुनिक्षेमविजय लखितं सुश्राविका हीरबाई पठनार्थं ॥छ। शुभं भवतु कल्य(ल्या)ण मसतु(स्तु) संवत् १६९२ वर(वर्षे) मागसर शु(सु)दि ९ भरूअचबंदरे लिखतं ।
(४) खतभात बिराजमान श्रीविजयानन्दसूरिजीने सूरत श्रीसङ्घ वती श्रीदर्शनविजयजीनो पत्र
सूरतना श्रीसङ्घ द्वारा चातुर्मास पधारवा माटे विनंतीरूपे, प्रस्तुत पत्र, त्रम्बावती(खम्भात)मां विराजमान श्रीविजयानन्दसूरिजीने उद्देशीने लखायो छे. शरुआतनां पद्योमा पार्श्वनाथप्रभु तथा मा सरस्वतीने नमस्कार करी कविए खम्भातर्नु संक्षेपमा वर्णन कयुं छे, अने सूरिजीने वन्दनानी उत्कण्ठा वर्णवी छे. बीजी ढाळमां सूरतनगरनी वर्णना करतां अमे शा कारणथी तमोने अहीं पधारवा विनंती करीए छीए ए कारणो दर्शाव्यां छे. त्यार पछीनी ढाळमां गुरुदर्शनोत्कण्ठानां पद्यो तेमज गुरुभगवन्तनी उपमानां पद्यो सुन्दर छे. चोथी ढाळमां गुरुउपदेशन अने पांचमी ढाळमां गुरुस्मरणर्नु फळ कविए आलेख्यु छे, छेल्ली ढाळमां सूरिजीनी साथे बिराजमान वाचक कीर्तिविजय, उपाध्याय देवविजय आदि पण्डित तथा मुनिपरिवारने सङ्घनी वन्दना लख्या बाद छल्ले स्वनामोल्लेख साथे कवि दर्शनविजयजीए पत्र पूर्ण कर्यो छे.
प्रगटप्रभावी त्रिभुवनि, त्रिभुवनजन सुखकार, प्रणमुं प्रीतिं पासजिण, वंछितफलदातार. १ भगवती भारती मनि धरी, पामी तास पसाय, लेख लखुं गुरुराजनइ, सुणतां सुख उपाय. २ विजयाणंदसूरि(री)सरू, साचि मोहणवेलि, जयविजय कवियण भणइ, दीठइ हो रंगरेलि. ३
ढाल ॥ राग - सामेरी ॥ स्वस्तीयश्री जिनराजना, प्रासाद अतिहिं उत्तंग, राजंति जाणुं जन्मजलनिधि-तरणप्रवहण चंग, गुणवंत संत महंत मोटा, इभ्य अधिक उदार, अति विबुधजनौघ सुंदर, धनद समो अवतार हो १