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अनुसन्धान-६५
श्रद्धांजलि
नवेम्बर - २०१४
३२१ स्व[स]त श्रीपाटणा महाशुभ सथांने सरेवे सभोपमालाओक श्री ७ गरणीजी मांणकसरीजी चरांणा श्रीअंमदावादथी ला० सेठ० वखतचंद खसलचंदना प्रणांम वांचजो । जत लखवा कारण से छे जे अंमारे श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री सीधाचलजीनो संग लेईने जतरा जवान महरत पोस वद ९, वरा(वार) रवेऊनुं नीरधारू छ। ने माहा शुद २ सोमवारने दीवसे 'अंतरेथी संघनु कुच करीने 'सधावानु, ते उपर तंमारे वहेलु पाधारवु । संघनु 'कारणारू हु बनसे। बी[जु] संवत १८८३ना कारतग सुद २थी सवत १८८४ना कारतग शुद २ सुधीनुं 'मूडकु श्रीपालीतांणा त्था श्रीभावनगर त्था श्रीघोघा त्था तलजनी जे लागत 'दुस्तुरी हसे ते सरेवे अंमो आपीने वरसा १ सुधीनु माफ कराव छ । माटे तमोने 'वेनेव्यु छु जे जत करवा "खांमुखां पधारवु । वली श्रीसीधाचलजीना उपर अंमो नवु दहेरू करावु छे ते देहरानी 'प्रतिसटानु महुरत फागण शुद ४ गरऊनु छे ते उपर पण तंमारे जरूर पधारवु । तमो आवे रूडु दीसे । लीख० १८८३ना मगसर वद १
ला० मोतीभईनी वंदणा वचजो । जतर करव वहल पधरणी ।
हमारे ख्यातनाम विद्वान् श्रीविनयसागर महोदय गत ३० नवम्बर (२०१४)को जयपुर स्थित अपने निवासस्थान में दिवंगत हुए । उनकी आयु ८६ सालकी थी।
उन्होंने भारतीय साहित्य, विशेषतः जैन साहित्यकी खूब सेवा की । कई ग्रन्थोंका सम्पादन, लिप्यन्तरण, प्रकाशन उन्होंने किया । उनके द्वारा लिखित शोधपत्र एवं सम्पादित कृतियां विविध सामयिकोंमें प्रकाशित होती रही है।
'अनुसन्धान' के साथ कई वर्षों से वे जुड़े थे। उनके अनेक सम्पादित लेख इसमें निरन्तर प्रकट होते रहे हैं।
उनकी विदाय से जैन विद्याजगत्को एक अपूरणीय क्षति हुई है। वे महोपाध्याय के पदसे अलङ्कृत थे ।
उनकी आत्माको शान्ति मिले !