SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवेम्बर २०१४ कुंडलीयो : पू (पुण्यवंत साहवे पेसू (सु) ए, रुडे चित्त वड रीत, दाता वड दांनि (ने) सरी, परम धरम परतीत. १ परम धरम परतीत, कृत सुकृत आप कर देखे, समाइक पोसह सुद्ध, गुरुदेव भ्रम गवेषे, करीयावर वड कुरब उरब जगडु भांम एसा, वधस्यु सुंणे वाखांण तप भाव दानि तिसा, पोरवाड वंस दीपे प्रथी जेन रीत अद्यापी (पि) जूए, रूहाइ धुर राजे सदा पू (पु) न्यवंत साह पेसुए. १७ पेसुकपुरके चोकमां मिलत लोक ही थोक, चांद्रणी चोका सुंदरी, गातां निरखे गोख. १८ चोक पेसुकपुरकाक्, इसि जाने इंद्रपुरका चाल : गजल : दुहा : चाल : २९९ आगि वस्ती [हे] एतीक्, कहुं [जीहे] केती केतीक्. १९ आगि वेरावावका रस्ताक्, म (मी) लत सुंदरी जिहां मस्ताक्, मटली सिर पर मांडीक्, अजब उढणी साडीक्. २० झं(झां)झर पगमां झमकेक्, ठमक ठमक वींछूआ ठमकेक् घुघरी शैलीया घमकेक्, सुंदरी दामनीसी चमकेक्. २१ चलकत दंतकी चूडीक्, राखडी बंधन रूडीक्, कीजरकी रेख [हे] कारी, सोनेकी रेख दंतमां भारीक्. २२ कोट पट घुंघट कीयाक्, लटकत नथ नक उठ लीयाक्, हस्ती द्युमत यु हुलराक्, सती सात सातका झुलराक्. २३ उढणी कसुंबल सारीक्, पाटली उपरां पारीक्, एसी सुंदर मतवारीक्, मस्तांन वावकी पनिहारीक्. २४ अजु जीमणे कांनिक, खु(ख)ब उंडे [हे] खांने (नी) क्, सिला जेसि दरीयाक्, भुरजा चिह्न दिशि भरीयाक्. २५ पेसकपुरका (के) तालकी, सोभा कही न जाय, तेसी मांनसर तालकी, सोभा लही छिनमाय २६ आगि विश्रांम ठांम वारीक्, जाइ जूई [फूल] की झारीक्, मरुआ मालती महकेक्, कोकिल अंब ही क(कु)हकेक्. २७ ३०० अनुसन्धान-६५ दाडिम गुल अंबीरीक्, जांबू फणस जंबीरीक्, करणी अरणी केतकीक्, चंबेली चंपा सेवंतीक्. २८ दु (दू) हा पेसकपुरकी उपमा, सोभा कही न जाय, एसि इंद्रलोककी उपमा, सोभा लही छिन माय. २९ पेसुआ पावन खेत हे, तीरथमें जैम गंग, आढा वराज इंद्रज्यं, दिन दिन चढते रंग. ३० स्वस्ति श्री कुंथुजिनं प्रणम्य। श्रीमति तत्र श्रीपेसुकपुर माहा सुभ सुथाने पूज्य [ज्या] राधे (ध्य) तमोत्तम, परमपूज्य अरचनीआंन्, परमगुरु, पू (पु) न्यपवित्र, चारित्रपात्र चूडामणी (णि), सकलभट्टारकपुरंदर, कुमताधि(तांध) कारनभोमणी (णि), विदुरजि (ज)नमुगटामि (म)णी (णि), सरस्वतीकंठाभरण, सकलकलासंपूर्ण चौदविद्यागुणजांण इत्यादिगुणगणालंकृत, विराज्यमांन००० इत्यादिक गुणें करी श्रीजी पूज्यजी सोभित, सरस्वतीकंठाभरण, सूरी (रि) श्री सी (शि) रोमणी (णि) धन ते गाम, धन ते नगर जिहां पूज्यजी विहार करें, विचरे, मासकल्प करें, चोमासु करें, धन्य जेहां श्रावक श्राविका श्रीपूज्यजीने वांदे, पोसह पडिकमणु करे, व्रत खण देश (वि) रती सर्ववर्ती उचरे। श्रीपूज्यजीनी वांणी सांभले। श्रीतपगछना नायक धन्य ते श्रावक श्राविका जे अमोघ अमृतमय वांणी सांभले । श्रीदेवाधिदेवनी सतरभेदी पूजा करे, अष्ठप्रकारी पूजा करे। श्रीपूज्यजी गुणे करी वे (वि) राज्यमांन, साधुमंडली सुशोभित, रागद्वेषने (नि)वारका यतः पृथवी पट कागल करूं, लेखण करूं वनराय, सघला सायर मसी करूं, तो तुम गुण लख्यो न जाय. १ दृष्टोऽद्य श्रुतकेवली गु(ग) णभृतामाद्यो गुरुगतमः, तीर्थस्याधिपतिर्महागणपती (ति) स्वामी सुधर्मा तथा । श्रीजम्बूप्रभवादयो मुनिवरा अन्येऽपि ये जज्ञिरे, ते सर्वे त्वयि गच्छनायक ! विभो ! दृष्टे च दृष्टा मया ॥ कलिकालगौतमावतार, लब्धना भंडार, श्रीपूज्यजी पूज्याराधे (ध्ये) तमोत्तम परमपूज्य, सकलभट्टारकचक्रचक्रवर्तीसभाभांम(मि) नी भालस्थलतिलकायमांन भट्टारक श्री००० १००८ श्री श्रीविजयराजिंद्रसूरि (री) श्वरजी चिरंजीवी चरणकमलान्
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy