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________________ नवेम्बर - २०१४ २९७ २९८ अनुसन्धान-६५ ११. बरडीक् = मोटी ? १५. शेलीया = कसबी वणाटर्नु वस्त्र १२. तनकीक = ? = शेलु [तेना छेडे रहेली घुघरी] १३. कुरब = ? १६. काजर = काजळ १४. वींछूआ = स्त्रीओनुं पगर्नु घरेणुं १७. दांत = हांथीदातना आभूषणमा १८. अजु = ? ॥६॥ श्रीपरमात्माय नमः ॥ स्वस्तिश्रीभवनं मनोजभवनं त्रैलोक्यलोकावनं, विद्यावल्लिवनं प्रहष्टभुवनं सौभाग्यभूभावनम् । क्लृप्ते(?)!लवनं शिवाध्वजवनं श्रेयोवनिजीवनं, पापाब्धेः पवनं भृशा निधुवनं पार्श्व स्तुवे पावनम् ॥१॥ स्वस्तिश्रीजिनं प्रणम्य सकलदेशश्रीशीरोमणी, वापी-कुप-तडाग-गढ-मढमिंदर-पोल-प्रकार-वाग-वाडी-वनखंड-आरामसुशोभित, प्रौढा श्रीजिनप्रासादसखरध्वजाकलसमनोहर बावनजिनाला जिनप्रासाद [सुशोभिते] ॥ श्रीजिनायधर्मेक(?) ॥ स्वस्तिश्रीपेसूकपुर माहा सुभ सुथाने श्रीजिनधर्मायतन] सुसोभित[ते] उपाश्रय-साधर्मी(मि)क-श्रीपोषघ[ध]साला सुसोभित[ते], प्रौढा आवास पर मंडित तत्र गिरपर्वत विराज्यमान् इभ्य श्रेष्ठी सार्थवाह वस्ती जिहां दुहा : सरसत मात सुपसायके से), प्रणमी सदगुरु पाय, गुण गावे(b) गिरुआ तणां, लखुं लेख चित्त लाय. १ ॥ चाल - गजल || पुरवर्णनम् ॥ सरसत मातकी कीजीए सेवाक्, लीजीए नाम निस-दिन गुरुदेवाक, पेसकपुर हि पोढाक, दुनीयांन मांहि ज्याका जस दोढाकू. २ गैर-टंक सिखर [हे] गि(गे)हराक्, जे(जि)हां वालेसरी देहराक्, वर्ण अढार जिहां वस्ताक्, राह चलत अपने कुल-रस्ताक्. ३ पोरवाडवंस [तिहां] दीपेक्, जस जगईं भामसा जीपेक्, वेपार करत वेपारीक, अपने वस्तु अनुसारीक्. ४ । मसरु' मुखमल मस्ताक्, हेमरू' अतलसका तखताक, चुनडी चोल' चटकालीक्', लेरीयां पाग' लटकालीक्. ५ 'बालद पोठ ही ओ(जो)डेक्, भल भल ल्यावते भाडेक्, खजूर खारिक कोपराक्, म(मि) श्री साकर टोपराक्. ६ आछै घ्रतकी कुंडीक्, आवत मुख सिबीडीक, आछी अमलकी "करडीक, बहोत ल्यावत(ते) "बरडीक्. ७ दुहा: पेसकपुरके चोकमें, दुंदाला घण साह, वि(वे)पारी विवहारी वडम, वडबरूद वडवाह. ८ पेसकपुरके चोकमा, सोनो घडे सोनार, घडीया घाट नोखा घडे, हद कंचनमय हार. ९ छोगाला नर छयल, भोगी वडा नर भल, पेसकपुरके चोकमां, घुमत कीयां अमल. १० पेसकपुरके चोकमां, मलत लोक ही मस्त, जिनवर कुंथु जुहारवा, हलि(ली) मलि(ली) आवत मुख हस्त. ११ चाल दीपे जैनका देहराक, स्वर्ग लग ज्याका छेहुराक(शिखराक्), उपम प्रभू(भु) मुखकी [नी]क्, कहत नावत(ते) तनकीक. १२ प्रभू(भु) सुरतकी बलिहारीक्, उआरणा लेत हैं नर नारीक्, भामंडल प्रभू(भु)को भलकेक्, सु(सू)रज ज्युं तेज[से] चलकेक्. १३ शिरछन मू(मु)गट [ही] सोहेक्, बाजूबंध बेरखा मोहेक्, कुंडलकी छब न्यारीक, ज्याके घूघरीयां घमकारीक्. १४ झगमग जोत ही झलकेक, दीपक अखंड ही बलतेक्, अंगीयां खु(ख)ब [ही] अरचेक्, सरस पुष्प(फ) ही स(च)रचेक्. १५ आगि अपासरा तपगछकाकु, ज्यां सूर(रि)पदकमलकलसकाका भेट्याक), तिहां रहि(हात धर्मके ध्यांनीक, गिरुआ गुनि(णि)जि(ज)न ग्यांनीक. १६
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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