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________________ नवेम्बर - २०१४ २९१ २९२ अनुसन्धान-६५ श्रीमत्पार्श्वजिनस्य मूनी(नि) फणज्योतिर्गणो राजते, मन्दारद्रुमपल्लव: सुरसितः शृङ्गे स्तिवङ्गे स्तितिः । सन्ध्याराग-वरिथि(?)-कुङ्कमविभा-सिन्धूरपूरोपमा, तेतार्कसिणरश्मिराशिविशदस्कारैकविद्युत्प्रभः ॥३॥ श्रीमतं श्रीमतं श्रीआदिजिनं प्रणम्य, श्रीशांतिजिनं प्रणम्य, श्रीनेमिजिनं प्रणम्य, श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य, श्रीमहावीरजिनं प्रणम्य । श्रीसकलदेशनगर सिरोमणि, नर-समुद्र-वापि-कुप-तडागादि-वाडि-वनखंड-आरामसुशोभिते, उपाश्रयसाधर्मिकजिनस्थानके, नित्योच्छवसंयुत न्यायप्रविणनरपतिनगरउत्तम श्रीपूज्यचरणकमलपरागन्यासरेणुपवित्रिते श्रीमत् राजपुरे सुभस्थाने पूज्याराध्येयतमोतम परमपूज्यार्चनीआनि, पर[म] पूज्य, चारित्र[पात्र] चूडामणि, कुमतांधकारनभोमणि, विद्वज्जनमुकुटामणि, सरस्वतिकंठाभरण, सकलकलासंपूर्ण००० यतिधर्मना वाहरू, शुद्ध पंथना देखाडणहार, कुमतिना उत्थापक, न्यायमार्गना प्रवर्तावणहार, भविक जीवनई रत्नत्रयना दायक, श्रीगुरुआज्ञाआराधक, मिथ्यामतनिकंदक, सकलक्रियाकोठार, छलाख छत्रीससहस्र सूत्रना पारगामी, स्व-समय परसमयनां जांण, अनेक सास्त्र प्रमाण न्याय काव्य नैषध पदमांन(?) कुमारसंभव-प्रमुखना जाण, तर्क शिरोरुह द्वादश चिंतामणि प्रमुख, सारस्वतादि व्याकरणना जांण, साहित्य नाटिक छंदालंकार पुराण अनेक स्व-समय पर-समयशास्त्रने विर्षि निपुण छो । षट् दर्शनना ज्ञायक, श्रीमज्जिनसासनोद्योतकारक, उत्सर्गापवाद निश्चय व्यवहार कारणना जांण, अनेक देश पुरनि विषई विहारना करणहार छो । धन्नानं जे राजा राणा युवराजा इश्वर मांडवी कोडंबीक श्रेश्रि(ष्ठि) सेनापति इभ्य व्यवहारिया ज्येह श्रीपूज्यजीना चरणकमल वांद्या अनई वांदस्ये ते धिन्य। ते श्रावक धन्य ते श्राविका धन्य [जे] श्रीपूज्यजीनी नीत अमृतमय देशना शांभले, पोसह पडीक्कमणा करें, व्रत पच्चक्खांण करे, देशविरति उच्चरे, पर्यपास्ति करें । श्रीपूज्यजी समस्त जिवना हीतकारक, भविजिनि(जन) मनआल्हादकारक, करुणासागर, महिमामेरुसमांन, धर्मभारधुरंधर समुद्रनि परें गंभीर, क्षमाभंडार, तपतेजदिवाकर, चंद्रमानी परे सौम्यवदनाकार मेरूनी परे अचल, वायुनी परे अप्रमत्त, वृषभनी परे धोरी, कुंजरनी परे सौंडीर, सींहनी परे दुर्धर, जिम कर्मने ले करी रहीत, तप-तेज-पूज्य तपसी, जीय कोहे जीय माणे, विद्वज्जनसभाशृंगार, परमानंददायक, परमबांधव, परमवडभीष्ट, परमसहोदर, परमस्नेहि, पर-उपगारी, जंगमतीर्थ, पंडितजि(ज)नललाट-चूडामणी, गणगच्छाधिपती, गच्छनायक, आसेवनाशिख्या ग्रहणाशिख्या देणहार, ज्ञानविज्ञानआगर, चतुरचातुर्यविज्ञानविदुर, वाचासत्यपणि यूधिष्ठिर, माहात्यागी, साहसीक, अनेक तप छठे अठमादि करणहार छे। पंच महाव्रत निर्वाह धोरी, महादिदि(देदी)प्यमांन, तेजपुंज, तपसी, धर्मभार धुरंधर, वाचा अविचल, किं बहूना । दूहा : गयणंगण कागल करूं ॥ अम्ह हइडूं दाढिम कूली ॥ हइडा ते किम वीसरे, जेहसु घणो विचार, घडि घडि नित सांभरे, जिम कोइल सहकार. ४ यथा स्मरन्ति गौः वत्सं० ॥ नित्यं ब्रह्म यथा स्मरन्ति मुनयो० ॥ विसार्या न वि वीसरे० ॥ केका स्मरति मेहो० ॥ गिरुआ सहेजे गुण करें, कंथ तु कारण जांण, श्रीलक्ष्मीसागरसूरी वंदता, दिनदिन वाधे वांन. ९ कलीकालगौतमावतार, षट्त्रिंशत् गुरूगुणविराजमान, तपगच्छमांहिं दिनकरसमान, जिम देवमांहि इंद्र, तारामांहि चंद्र, गिरिमांहि मेरु, वाजिनमा भेरी, सूत्रमाहिं श्रीकल्पसूत्र, मंत्राहि श्रीनवकार, सुखमांहि संतोष, पर्वमांहि श्रीपज्जूसणापर्व, हस्तीमांहिं ऐरावण, रत्नमांहि चिंतामणि तिम गच्छमाहिं श्रीतपागच्छ तेह मांहि सूरीगुणे करी शोभित छे. पठाविता अनेक छात्र, अनाथना नाथ, धन्न ते गामागर नगर खेड कुब्बड मंडब पट्टण दोणमुह आराम सन्निवेस संबाह जि श्रीपूज्यजी सारीखा रत्न हवा । धन्न ते ओसवाल ज्ञातीय सा० हेमराज कुलदीपक, धन्न ते माता राजाबाइ कुखें श्रीपूज्यजी सरीखा रत्न हवा । धन्न श्रीवृद्धिसागरसूरी जेणे गच्छनायक पदवी आपी । सकल शास्त्रपारगामी धन्य ते राजपुर नगर जिहां पूज्यजी चौमासुं रह्या । धन्न ते श्रावक धन्न ते श्राविका जे पुज्यजीनी अमृतश्रवणी वाणी सांभलें । तथा श्रीपूज्यजीना गुण अणंत मे मुखे एक जीभे किम वर्णवाय । जो सरस्वती प्रसन्न थाय तो पणि वा
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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