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________________ नवेम्बर २०१४ पद्मप्रभुजी जंबुसर वंदो, आमोद अजीत जीणंद रे, गंधारे गीरुओ जीन गाणे, सीधारथकुलचंद रे. २० सूरिजन ...... धर्मनी करणी तुम पधारे, वधस्यें व्रत प[च्च ] खांण रे, २४७ माल उपधानादिक केई वहेस्यें, सांभली तुम मुखवांण रे. २१ सूरिजन...... चातुकनी परें वाट तुमारि, सीणोरसहेर वंदावो रे, साणंदमें स्यूं मोही रह्या छो, धर्मलाभ न कहावो रे. २२ सूरिजन ....... ठगारो देस छें साणंद केरो, मिठी कहे मुख वात रे, सांभली संघने रीस चढे तो, मेलज्यो पुज्य सीणोर रे. २३ सूरिजन ...... ठामोठा संघ तुमारा, अमने केम संभारो रे, पण गीरुआ गंभिर थईनें, मनमां केम न वीचारो रे. २४ सूरिजन...... सीणोर क्षेत्रना संघनें उपर कृपा करि एक मन रे, दील धरजो जीनयात्रासमई, सरीरना करजो जतन्न रे. २५ सूरिजन...... तुमे उपगारि आदेशी पेख्या, न्यांनविजय पंन्यास रे, तपस्या- लेहणी प्रभावथी रे, गहगट्ट हुओ चोमास रे. २६ सूरिजन ....... गुयनविजय प्रसाद महेंद्रगुप हीमतविजयकहें तु चिरंजीवो, संघनी मांम वसाय (या) रे. २७ सूरिजन...... ॥ इति भासं सम्पूर्णम् ॥ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पांचे खामणे करी [खामु......]००० इति लेखमङ्गल समाप्तः सम्पूर्णः ॥ ॥संवत् १८६३ना वर्षे चैत्र सूद ५ रवौ दिने । श्रेयम् ॥ सेवक मु० रामविजयनी त्रीकाल वंदणा अवधारवि माफ ॥ श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री शुभं भवतुः ॥ लि० अधिक नून्य (न्यून) २४८ अनुसन्धान- ६५ (२२) राजनगरस्थ - श्रीदानरत्नसूरिने उद्देशीने सूरतथी कनकरत्नजीनो पत्र राजनगर स्थित दानरत्नसूरिजीने उद्देशीने सूरतथी कनकरत्नजीए प्रस्तुत पत्र पाठव्यो छे. देशवर्णन, सिद्धाक्षरवर्णन अने पछी शान्तिजिनवर्णन एम कुल १० श्लोकोनुं मङ्गलाचरण कर्या बाद कविए पत्रनी शरुआत करी छे. सूरजपुरनी समृद्धि वर्णवता वकारना उल्लेखनो तेमज पुण्यथी प्राप्त थतां पांच रत्नोनी वर्णनानां पद्यो सुन्दर छे. त्यार पछीनां पद्योमां कवि सूरिजीना ३६ गुणोनुं वर्णन करे छे. पत्रमां गद्यविभागनी शरुआत करता दानरत्नसूरिजी तेमज तेमना परिवारने वन्दना - सुखशातादिपृच्छा करी फरी सूरिजीना गुणोनुं वर्णन करे छे. पत्र लेखक चातुर्मास सूरजपुरमा बिराजमान होइ त्यां कई कई आराधनाओ थई तेनो विस्तृत चितार पत्रमां आलेखे छे. साथे साथे चातुर्मासमां वर्षाथी शुं ताराजी सर्जाई, तेना निराकरणना प्रयत्नमां थयेली निष्फळतानी पण खास नोंध टपकावे छे. पं. हेमरत्नजीना शिष्यनी योग्यतानी विगत आपी लोकोनी वातो पूज्यश्रीने रजू करी पत्रलेखके गुरुभगवन्त माटेनो पोतानो समर्पणभाव प्रगट कर्यो छे. वळी पूज्यश्रीना प्रभावनी वात, सूरजपुरथी पधार्या ते अंगेनी टकोर करी त्यांना श्रावकोने नामोल्लेख साथे धर्मलाभ पाठवे छे. पत्रान्ते पोतानी साथे रहेला मुनिओ तरफथी वन्दना करी मीया, खेडादि क्षेत्रमां थयेल आराधनानुं वर्णन करे छे. विशेषमां अगासीना समारकाम माटे द्रव्यनी मांगणी तेमज शान्तिनाथनी देहरीनां १२ पगथीयानी नोंध महत्त्वपूर्ण छे. समग्र पत्र अत्यंत अशुद्ध छे. सुधारवो शक्य न होवाथी अत्रे यथावत् छाप्यो छे. * श्री चतुर्विंशतियुगश्चराणां प्रणम्य । आर्यकाव्यानि स्थितिः । स्वस्तिश्रीमत्धर्मफलाद्भुविजये जम्बूद्वीपे राजतो, दाहिण्ये भरते वशसीपीता तास तद्देहि स्थीतो । [आ]त्म: स्थाने कनफलष्मनवभिः टण्का च सेकादिने, सा लच्छीवरभूमिपटले तस्याय तुभ्यं नमः ॥१॥ ॥ इति देशवर्णनम् ॥
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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