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________________ नवेम्बर - २०१४ २०५ २०६ अनुसन्धान-६५ दूहा : श्रीरष्टोत्तरयुत गणी, गणधर सहुना मोड, श्रीविजयदेवेंद्रसूरिंदजी, कोन करै तुम होड. १ ॥ अजित जिणंदसुं प्रीतडी - ए देशी ॥ मरुधर देस पधारीयै, नागोरे हो जगजनहितकार के, करुणा कीजै साहिबा, श्रीसंघनी हो वीनती चित्त धार के. १ श्रीविजयदेवेंद्रसूरीश्वरा, धन्य मुनिवर हो सेवें नित तुम पाय के, चरणकमलने सेवतां, तेहनें इहांथी हो वंदु चित्त लाय के. २ श्रीविजय..... रूपविजय महिमानिलो, रत्न मुनिवर हो रत्नथी खाण के, हीरविजय अति हरखसु, नित सेवें हो कांतिविजय जाण के. ३ श्रीविजय..... केसरविजय चित्त ऊजलें, विवेकसागर हो अति विनयप्रधान के, दानविजय गुणआगला, रंगसागर हो रहे चरण प्रमाण के. ४ श्रीविजय..... इत्यादिक मुनिवर घणा, सेवें सदगुरु हो नित चित्त लगाय के, तन-मन-वचनथी साचवे, गुरुसेवा हो सब सुखनी दाय के. ५ श्रीविजय..... इहाथी वंदै भावसुं, रूपेंद्रसागर हो नित नवले रंग के, खेमसागर आनंदथी, केसरसागर हो मनरंग अभंग के. ६ श्रीविजय..... मुनि गोतम रंगें नमें, लालसागर हो तुम वंदै पाय के, रिषभमुनि मनरंगथी, वंदै भाव हो सुभ वदन ऊमाय के. ७ श्रीविजय..... उमेदमल उमंगथी, रंगें प्रणमें हो रतनों मन धार के, पूनिमचंद कर जोडिनें, वलि वंदै हो चित्त हरख अपार के. ८ श्रीविजय..... इहांथी मोहन वंदना, मांनीजै हो गुरु वार हजार कें, सहु मुनीवरथी वंदना, कहज्यो अहनिशि हो नित करुणा भंडार के. ९ धन्य ते श्रावक श्राविका, गुरुचरणें हो रहै चित्त लगाय कें, तेहनें धर्मलाभ माहरो, वलि संघनी हो वंदना मुनिराय के. १० श्रीविजय..... तिहांना संघ प्रते वली, सहु संघनो हो कहज्यो परणाम के, संघ प्रते संभालज्यौ, देवदरसनें हो करुणाना धाम के. ११ श्रीविजय..... उगणीससत(१९०७) संवत्सरें, मृगशिर मासे हो वदि तेरस दाख के, रविवारें गुरुगुण भला, गाया भाव हो तन-मननी साख के. १२ श्रीविजय.... तपगछमां अति दीपता, गुरु गिरुवा हो गुणना भंडार के, कृपासागर गहरा गुणी, मानसेवक हो रूपेंद्र मन धार के. १३ श्रीविजय..... ॥ इति श्रीविज्ञप्तिपत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ श्री जीनाय नमः ॥ स्विस्ति श्रीपालणपुर सुभ सूथाने पुज, परमपुज, सरव ओपमा बिराजमान, अनेकओपमालायक००० इत्यादिक छतीस छतीसे, एकसो आठ सूरीश्वर गुणे करी बिराजमान जंगमजूगप्रधान सकल भट्टारक सिरोमणी पुरंदरभट्टारकणी श्रीश्री १०८ विजयदेवेंद्रसूरीश्वरजी चरणानु चरणकवलायनै नागोरथी सदा अग्याकारी चरणसैवी समसत संघं लिखत बदणा १०८ वार दिन प्रते त्रिकाल अवधारसी। अठारा समाचार श्रीश्रीजी रा तेज प्रताप सुनिजर कर भलो छै। श्रीश्रीजी साहबा रा दरसण री आभीलाषां अत्यंत है सु संघ ऊपर कीरपा करनै दरसण दीरावसो तिको दीन सफल हसी । अठै चोमासी संघ ऊपर कीरपा करने पं. रूपेंद्रसागरजीनु मेलासो घणा जोग्य छै नै श्रीजिनराज रो धरमध्यान पोस पडिकमणो वखण वाणी जिनपूजादिक री बधोतर उवछ आछीतरसु हवा है। पूरे उछव धरम री बोधोत्तर सदा हुवै छै । हमैक पुसतक पीण गंणां वरससू अरकीयो थो सो इणा रा ऊपदेससु सिघवी मयाचंदजी रै गर लीधो छै नै ऊछव पुसतक रा नीराट गणो हुवा छै । नै वखणे श्रीनंदीजी सुतर वचीजें छै सो मालम हइसी । नै आवतो चोमासो श्रीसिघ ऊपर कीरपा करनै इणानु ही जै रखावसी । पं. रूपेंद्रसागरजी रो चोमासो अठ रखायासु सिधनै ऊपदेस धरमधांन पढावण री बधोतर आछीतरसू हूसी सो कीरपा करनै चोमासो बंठाबेठ रखावसी । सघे वीनती अठै खतरमै धरमधान री कालानुसार लाभ देखै लीखी छै सू जरूर मनावसी । बीजूतो श्रीश्रीजीस्हाब कीरपा करने मेलो सो प्रमाण छै पीण अवरक' तो जरूर बंठाबेठ रखावसी । घणो काइ वीनवै आप तो सरव जाण छै। श्रीसुधरमास्वामरी गांदी वीराजो छ। सो जरूर कीरपा सघने लाभ देखीने इणानु ही ज रखावसी । सीघ "उप्र कीरपा सुद्रसीटी० रखावे जीणथी वीसष रखावसी । श्रीधरमधांन देवजातराए संघनै आयद करावसी । वलमान सुलेख कीरपा करनै दीरावसी । संघ लायक सेवा बंदगी फुरमावसी । सरव साधुनै वनणा कहसी चोपडा गीरधारीमलकी
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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