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________________ नवेम्बर २०१४ एकत्रीस गुण सिद्धना रे, परकासै परवीण, बत्रीसै वर लक्षणे रे, लक्षत अंग अदीन. ८ भविक....... तेत्रीस आसातना रे, टालें सुगुरु सदैव, चौत्रीस अतिसय जिन तणा रे, परूपता नितमेव. ९ भविक....... पेत्रीस गुण जिन वांणिना रे, श्रीगुरु तेहना जाण, छत्रीस गुण सूरीना रे, तेण सदा सोभमांन. १० भविक ...... असीच्यार गणां शिरे रे, थे छो मोटा राय, मांनसागर पंडित तणो रे, रूपेंद्र वंदे पाय. ११ भविक....... ॥ अथ गुरुदेशनगरवर्णन ॥ दूहा : धन सेत्रोवा नगर तिहां, धरा नांम धराय, धन जाति ओसवंश में अवतरीया मुनिराय. १ धन गुरु जिहां जनमीया, धन्य तुम्हारी जाति, धन चोपडा अमीचंद में, धन सरूपदे मात. २ पटधारी जिनेंद्रसूरिनें, भलो सोभायो पाट, गुरु प्रतपो रवि परें, राज करो दिनथाट ३ नागोरनो संघ वीनवे, वेग पधारो राज, अम्हनें तुम्हे पावन करो, सारो धर्मना काज. ४ नागोरनो संघ मिली करी, भाखें वचन विशेष, अवधारो अम्ह वीनती, सूंदर लिखीयें लेख. ५ ॥ अथ सवैया ॥ १९७ इंद्रिय पांचको पोष निवारक, धारक सत्य संतोष आराधै, नवविधि वाड मनोहर दाखत, दसविध धर्म मुनिपद साधै, बारस भावना नित्य संभारत, तप-जप खप करि संयम वाधै, सूरि छत्रीस गुणें करि राजत, वीरजिणंद पद मारग लाधै. १ ॥ कवित्त ॥ उदयें दिनेंद्र भ्रम, जाहर जिनेंद्र जोत, विमल सुरेंद्र ध्यान, जिनको निहार्यो है, सबही सुरेंद्र मिल, चोसठ करत सेव, नीके नरेंद्र आन, धरम उर धार्यो है, अनुसन्धान- ६५ सकल भट्टारक मणेंद्रसिर जगतगुरु षट् गुण गुणेंद्र युं, मुनेंद्रपद तार्यो है, राजत जिनेंद्रसूर, तखत देवेंद्रसूर, नूरपूर तप साध, रमेंद्र पोष दोष वार्यो है. २ दूहा: पूरतंत्र तपसा परम, सूरमंत्र सिरताज, नूरजंत्र जाहर निपुण, कूरहंत्र" मुनिराज ३ पूज तणा गुण वर्णवं, मुझ मुख जीहा एक, ब्रह्मा च्यार मुखे करी, कर न सकें गुणलेख. ४ गयणांगण कागल करूं ०॥ ५ १९८ अम्ह हियडो दाडिम कुली ० ॥ ६ हियडै ते किम वीसरै, जे सज्जन सुविचार, छिन छिनमे नित संभरे, जिम कोयल सहकार ७ किहां कोयल किहां अंबवन ०॥ ८ मठ मांहै तापस वसै ०॥ ९ गोह पहिली नीपजे ०॥ १० दरसण दीजै साहिबा, करि करुणा हितकार, आज इणें दुसम अरै, तुंहि ज संघआधार. ११ ॥ अथ गुणवर्णनम् ॥ स्वस्ति श्रीफलवर्द्धिपार्श्वमनिशं वन्दे सदानन्ददं, ते यस्य स्मरणेन पापभवभीकष्टं सतां शाम्यति । विश्वव्यापिमहान्धकारपटलं सूर्यो यथा नश्यति, सद्वृन्दारकवृन्दवन्दितपदं मोहारिनाशेऽगदम् ॥ १॥ मर्त्यक्षेत्रगतोऽपि लोकत्रितयं विद्योतते दीप्तिभि:, ज्ञानादर्शतलेन हस्तकणवत् पश्यन्ति सर्वाङ्गिनः । मेघो वर्णित वारि वारिधि तथा दिश्यन्ति सज्जन्तवः, तं पार्श्व प्रणिपत्य निर्मलधिया कुर्वे गुरोर्वर्णनम् ||२|| प्रवरे पालणपौरे, कुबेरर्द्धिसमन्विते । अखण्डनीतिसंयुक्ते धर्मकर्मान्विते पुनः ॥३॥ एतादृशे शुभे स्थाने, निवश (स) न्ते (न्ति ) महाधियः । गुणौघवच्छिरोमण्यः सकलभट्टारकेषु च ॥४॥ ,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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