SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपे, पण आ प्रकारनो कल्पनावैभव तो कोई नीवडेला कविने ज साध्य होय तो होय. आपणे ते वैभवनी २-४ वानगी जोईशुं : पद्य ३-४-५मां नेमिकुमार द्वारा श्रीकृष्णना पाञ्चजन्य शङ्खना वादननो प्रसंग लईने कविए करेली कल्पना जुओ : मुखकमल उपर धारण करेल शङ्ख एम सूचवे छे के तेना वडे नेमिकुमार कृष्णना यशने जाणे पी रह्या छे ! (३). अथवा, नेमिनुं मुखडुं पूर्ण चन्द्र जेवुं ऊजळं अने हसतुं छे; चन्द्र पण समुद्रनो पुत्र अने शङ्ख पण सागरजन्मा, ए रीते ए बन्ने सगा भाई थाय. ज्यारे नेमि शङ्खने मोंमां ले छे त्यारे एवं लागे छे के शङ्ख पोताना भाई चन्द्रने मळवा नीकळ्यो होय अने नेमि-मुखमां पोताना भाईनो भ्रम थतां ते तेने भेटी रह्यो होय ! (४). नेमि द्वारा फूंकाता शङ्खना घोषथी आखुं जगत् शब्दाकुल बन्युं हतुं. एम लागे के भवावीमां ऊंघी रहेला भव्य जीवोने पोताना लक्ष्यस्थान शिवपुर तरफ जवा माटे जगाडी रह्या होय ! ( ५ ). नेमि अने कृष्ण वच्चे बलाबल - परीक्षा काजे द्वन्द्व थयुं छे. ते वखते कृष्ण बहु बहु मथ्या छतां हांफी जाय छे, अने छतां नेमिने परास्त करवानो यत्न छोडता नथी. ए दृश्यने तादृश करतां कवि कल्पना करे छे के आ तो साक्षात् मोह राजा, कमकौवत होवा छतां पोतानी शक्तिनो विचार कर्या विना, धर्मराजने हराववा माटे मथी रह्यो होय ! (६). सातमा पद्यमां तो कविए कमाल करी छे ! कवि विचारे छे के नेमिनाथने परणवुं नहोतुं तो राजीमतीना आंगणे गया केम ? अने गया ज, तो पाछा शा माटे वळी गया - तेने परण्या विना ? वात एम छे के नेमिने बे प्रिया हती : एक राजुल, बीजी मुक्ति. बन्नेमांथी एकने पण छोडवानुं मन न हतुं. एटले ते पहेलां राजीमतीने त्यां गया, अने पोतानो स्नेह जतावीने, (पोताना मार्गे आववानुं निमन्त्रण आपीने) पाछा फर्या; आ तेमनुं पाछा फरवुं ते मुक्तिवधू तरफनी पोतानी आसक्तिनुं स्पष्ट प्रगटीकरण हतुं ! केवो अद्भुत छे कविनो कल्पनावैभव ! अने आवो वैभव तो आ पत्र काव्यमा ठेरठेर पथरायो छे. (8) 'आनन्दविज्ञप्ति' ए नाम ज तेना कविनी प्रतिभानो संकेत आपी जाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy