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गुरुजनोए ते क्षतिओ सुधारी नहि आपी होय - सहेतुक, के जेथी आ मुनिनी क्षमताना विकासनी गच्छपतिने पूरी जाणकारी सुलभ बने; अने तो तेमनुं मार्गदर्शन पण तेने माटे प्राप्त थाय. आ दृष्टिए विचारतां आ पत्रमा छन्दोबन्ध, प्रयोगो वगेरेमां केटलीक क्षतिओ होवा छतां, तेमने दाखवेलुं पाण्डित्य पण कांई ओछु तो नथी ज.
__ आमां अनेक चित्र-काव्यो छे. नीवडेल कवि ज करी शके तेवा द्विपदी, त्रिपदी, एकपदी आदिना प्रयोगो छे. पद्य १२-१३ मां यमकनी चमत्कृति नोंधपात्र छे; जोके तेवां अन्य पद्यो पण छे ज. कल्पना अथवा अलङ्कारनी दृष्टिए तपासीए तो पद्य ३५मां एक तरफ व्यतिरेक तो बीजी बाजुए विरोध - एम बे बे अलङ्कारोनुं साङ्कर्य केटलुं रोचक बन्युं छे ! आवी अनेक चमत्कृतिजनक वातो आ प्रलम्ब पत्रमा अवश्य मळे.
(३)
- त्रीजो पत्र उपाध्याय विनयविजयजीनो छे. पोतानी प्रचण्ड छतां सौम्य विद्वत्ताथी जैन जगत्मा, पंकायेला आ साधुजने अनेक ग्रन्थोनुं सर्जन कयुं छे. लोकप्रकाश, हेमप्रकाश, हेमप्रक्रिया, शान्तसुधारस, नयकर्णिका जेवा अनेक ग्रन्थो तेमंना नामे छे. तेमना अन्य विज्ञप्तिपत्रो पण छे अने ते अन्यान्य स्थाने प्रकाशित पण छे. पण अहीं प्रगट थतो तेमनो पत्र जरा जुदी ज भात पाडनारो पत्र छे.
- सौथी पहेलां तो आ पत्र प्राकृत-संस्कृत मिश्र भाषामां रचायो छे. प्रत्येक श्लोकनो पूर्वार्ध प्राकृत,, तो उत्तरार्ध संस्कृत. अक्षरमेळ अने मात्रामेळ धरावता विविध छन्दोमां बे भाषाओनो शब्दमेळ बेसाडवो ए सामान्य गजाना कवि/ विद्वान्नुं काम नथी ज. शब्दो पण जोडकणांनी माफक न गोठवाय, ए तो एना प्रतिपाद्य विषयने अनुरूप अने प्रवाहबद्ध वहेता-प्रगटता आवे, अने काव्यने प्रसाद अने माधुर्यथी छलकावता रहे. अलङ्कारो तो छोगामां !
बीजी विशेषता ते छन्दो परनुं कवि, प्रभुत्व. शरुआत झुलणा के प्रभातियाना लयमां वर्तता छन्दनां सुमधुर गेय पद्योथी थई छे. वच्चे पुष्पिताग्रा जेवा कठिन छन्दो पण आवे. पण तेमां थयेली पद्यरचना श्रमसाध्य होवानुं नहि लागे. प्रसन्न-मधुर-प्राञ्जल पदधारा ज अनुभवाय.
त्रीजी विशेषता ते कविनो कल्पनावैभव. शब्दसामर्थ्य पाण्डित्यनी खातरी
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