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________________ स्वतन्त्र ग्रन्थरूपे सम्पूर्ण उपलब्ध छे, अने प्रकाशित पण छे; ज्यारे बीजो ते आ विज्ञप्तिपत्रनो अंश छे अने त्रुटित ज उपलब्ध छे. वि.पत्रनो अन्य एक अंश ते 'गुर्वावली'ना नामे स्वतन्त्र ग्रन्थरूपे प्राप्त अने मुद्रित छे. आमां तेमणे भगवान् महावीरथी मांडीने पोताना गुरु सुधीना आचार्योनी पाटपरम्परा पद्यात्मक रीते आलेखी छे. आ महा-पत्रनो एक वधु नानकडो अंश मळी आव्यो छे, जे आ. अङ्कमां प्रगट थई रह्यो छे. आ प्रगट करतां अने आ पत्रनी नकल लखतां मनमा एकज' झंखना कहुं के प्रार्थना प्रवर्तती रही छे के शासनदेवनी कृपा थाय अने कोई रीते आ महा-पत्रनी मूल प्रति जडी जाय के पछी आ पत्रना खूटता अंशो पण जडी जाय तो केवू सारुं ! __आ पत्रनो अछडतो परिचय तेनी भूमिकामां आप्यो छे, तेमज तेमां वर्ताती अमुक अस्पष्टता अंगे खुलासो पण पादटीपरूपे आपेल छे. एथी विशेष कशु कहेवार्नु रहेतुं नथी. ____ काव्य-चमत्कृतिनी दृष्टिए आ अंशमां कदाच कोईने प्रश्न उद्भवे, परन्तु आ श्लोको मोटाभागे चित्र-काव्यात्मक होवानुं समजाय, तो पछी ते फरियादनो अवकाश नहि रहे. एक अटकळ थाय के जो आ पत्रांशमां वर्णन छे ते प्रमाणेनां चित्र प्राप्त थाय, अथवा तो आमां जिनालयनां वर्णवातां विविध अङ्गोने कोई कुशल ज्ञाता बराबर समजे अने ते अनुसार ते ते चैत्यना नकशा आलेखी शके, तो पंचासर चैत्य, शत्रुञ्जय-पर्वत अने चैत्य, रैवताचलनां चैत्य, जीरापल्ली-चैत्य, शान्तिनाथ चैत्य वगेरे चैत्यो, आ पत्र-लेखकना समयमां केवां हशे तेनो एक मजानो आलेख अवश्य मळी शके. (२) बीजा क्रमे आपवामां आवेलो पत्र ते विजयहर्ष मुनिए लखेल काव्यमय पत्र छे. पत्रलेखक विद्यार्थी-अवस्थामां होय अने तेमणे पोताना अभ्यासना विकासार्थे आ रचना करी होय तेवी शक्यता जणाय छे. जो आ अटकळ साची होय तो, एक विद्यार्थी द्वारा आटली कठिन-गम्भीर रचना आपणने हेरत पमाडे तेवी गणाय. नवाभ्यस्तनी रचनामां अमुक क्षति रहे ज; कदाच आ मुनिना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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