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________________ 5 आ खण्डमा प्रगट थता विज्ञप्तिपत्रोनो परिचय विज्ञप्तिपत्रो उपर काम करवानुं विचार्यं त्यारे अंदाज न हतो के अमारे पत्रोनो महासागर तरवानो आवशे. वि. पत्र विशेषाङ्कना बे खण्ड कर्या पछी एम हतुं के हवे थोडाक पत्रो हशे अने तेनो एक नानो अङ्क करी लईशुं. पण ज्यारे खरेखर त्रीजा खण्डनुं काम हाथ पर लीधुं त्यारे एकत्र थती सामग्री जोतां ज थयुं के आमांथी तो हजी बे खण्ड करवा पडशे ! आमां पण केटलाक एकविधता धरावता पत्रोने खपमां न लईए, अने नाना नाना प्रकीर्ण पत्रोने तो साव पडता मूकीए तो पण बे खण्ड थाय एटली सामग्री अमारी सामे छे. एमांथी केटलाक संस्कृत पत्रो तथा केटलाक गुजराती के मारुगुर्जर भाषाना पत्रोनुं आ त्रीजा खण्डमां सङ्कलन कर्तुं छे. आ रीते एक विशिष्ट विषयनी मूल्यवान् सामग्रीनो उद्धार थाय छे ते ज महत्त्वनुं छे. अवशिष्ट पत्रो हवे पछीना खण्डमां प्रगट करवानी गणतरी छे. (१) आ खण्डमां सर्वप्रथम पत्र (खरेखर तो पत्रांश) ते 'त्रिदशतरङ्गिणी 'नो अप्रगट अंश छे. श्रीमुनिसुन्दरसूरि महाराजे अध्यात्मकल्पद्रुम, उपदेशरत्नाकर, त्रैविद्यगोष्ठी, जिनस्तोत्ररत्नकोश जेवा अनेक ग्रन्थो रच्या छे, तो तेमणे 'त्रिदशतरङ्गिणी' नामनो, 'एक सो आठ हाथ लांबो, असंख्य चित्रबन्ध-काव्योथी तथा तेनां चित्रोथी समृद्ध एवो पत्र - ग्रन्थ पण रच्यो छे. ते आखो पत्र के तेनां चित्रो तो आजे काळना गर्तमां विलुप्त छे, पण तेना केटलाक अंशो उपलब्ध छे. एक अंश 'जिनस्तोत्ररत्नकोश' नामे त्रुटित रूपमां ज प्राप्त छे, जे ‘जैनस्तोत्रसङ्ग्रह' नामे ग्रन्थमां प्रकाशित छे. तेमणे रचेला बे जिनस्तोत्ररत्नकोश मळे छे, जेमां एक १. प्रचलित मान्यता १०८ हाथनी छे. परन्तु जयचन्द्रसूरि - शिष्ये रचेल 'सोमसुन्दरसूरिबिरुदावलिकुलक' रचनामां 'चउरासीकर निम्मविअ लेख, जिणि रंजि कविअणगण अशेष" आ उल्लेख जोवा मळ्यो छे, ते जोतां आ लेख ८४ हाथ प्रमाण हतो तेवुं स्पष्ट थाय छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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