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________________ जुलाई - २०१४ सूत्रकृताङ्गसूत्र व्याख्याननी वात ध्यानाकर्षक छे. श्लोक ४९ थी ५९नां दस पद्योमां कर्ताए पोतानो गुरुभगवन्त प्रत्येनो पूज्यभाव व्यक्त कर्यो छे. तेमां पण श्लोक ५०मां 'रत्नो तो राजाना घेर ज शोभे' जणावी गुरुभगवन्तना गुणो माटे श्रेष्ठ उपमा मूकी छे. श्लोक ६०-६१-६२मां प्रतिपत्रनी अपेक्षा जणावी श्लोक ६४-६५-६६-६७-६८मां गुरुभगवन्तनी सेवामां रहेला पोतानाथी नाना सर्वे साधुओनां नामपूर्वक अनुवन्दना जणावी छे. साथे पोतानी साथे चार्तुमास रहेला साधुवृन्द-साध्वीवृन्दनी वन्दना पण श्लोक ७०७१मां जणावी छे. पछीना ७२-७३-७४-७५ना श्लोकोमा वेलाउल (वेरावळ), वणथलि (वंथली), धुराजीपुर (धोराजी) नगरमां चातुर्मास बिराजमान सर्व साधुभगवन्तनां नाम जणावी एमना वती वन्दना निवेदित करी छे. श्लोक ७८मां शुभकार्यमां पोताने याद करवानी प्रार्थना सुन्दर शब्दोमां प्रगट करी छे. प्रान्ते श्लोक ७९-८० पूज्यश्रीनी कृपादृष्टिनी अने पत्रगत अविनय बदल क्षमानी याचना करी पत्र पूर्ण कर्यो छे. प्रस्तुत विज्ञप्तिलेखनी नकल अमने वडोदरा - हंसविजयजी जैन ज्ञानमन्दिरमांथी प्राप्त थई छे. एक मजानी कृति सम्पादन माटे आपवा बदल ते मंण्डळना व्यवस्थापकोनो खूब-खूब आभार । --- ॥ श्रीदेवकपत्तनात् । उ. श्रीविनयविजयग.लेख ३५ । श्रीपत्तननगरे ॥ पूज्याराध्येय श्रीवर्द्धमानजिनपट्टपरम्परापुरन्ध्रीतिलकश्रीजिनशासनभृङ्गार ॥ श्रीपत्तननगरे ॥ [आ]राध्यतम श्रीतपागच्छाधिराज-भट्टारकश्री २१ श्रीविजयदेवसूरीश्वरचरणकमलान् ॥ ॐ अहँ नमः ॥ ऐं नमः । सत्थि सिरिकमलिणीगहणदिणणायगं, नेमिजिणणायगं सिद्धिसुहदायगं । यमतिभक्तिस्फुरत्पुलकदन्तुरतनु किनिकरो नमत्यमलमतिवैभवः ॥१॥ जेण सुहसीलवम्मेण वम्महभडो, जति(झत्ति) मुसुमूरिओ जइवि अइउब्भडो। . चित्रमिह किमतनोः परिभवे दोष्मता, बलपरीक्षा विलुप्ताऽच्युतास्यत्विषा ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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