________________
६४
अनुसन्धान-६४
(३)
देवकपत्तनात् पत्तननगरे श्रीविजयदेवसूरि प्रति उपाध्यायश्रीविनयविजयगणिलिखितो लेख:
- सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय उपाध्याय श्रीविनयविजयजी - जिनशासननी एक विलक्षण प्रतिभा । आगमनुं क्षेत्र होय के साहित्य- (काव्यनु), सर्वत्र एमनुं प्रदान अनन्य छे. कल्पसूत्र-सुबोधिकावृत्ति, लोकप्रकाश, शान्तसुधारस, इन्दुदूतकाव्य जेवा संस्कृत ग्रन्थो तेमज श्रीपालरास जेवी गुर्जररचनाओ आजे पण जगतमा एमनुं कीर्तिगान करी रही छे.
देवकपत्तन ( देवपुर-पाटण)थी पत्तन (सिद्धपुर-पाटण) विराजमान श्रीविजय-देवसूरीश्वरजी म.ने लखेल प्रस्तुत लेख पण तेमनी ज रचना छे. भाषा- प्रभुत्व कोने कहेवाय? अनो प्रत्यक्ष बोध प्रस्तुत कृति करावी आपे छे. पोताना मनना भावोने गाथाना पूर्वार्द्धमां प्राकृतभाषामां, तथा उत्तरार्द्धमां संस्कृतमां, ते पण प्रांजल शैलीए, निबद्ध करवा ते खरेखर कष्टसाध्य कार्य छे.
__ प्रारम्भना १३ (१ थी १३) पद्योमा कामविजेता श्रीनेमिजिनने नमस्कार कर्या छे. ते समये देवकपत्तन( देवपुर-पाटण)मां नेमिनाथप्रभु- चैत्य हशे एथी कविए ते प्रभुने नमस्कार कर्या छे. श्लोक ७७मां आज वात कविए पुष्ट करी छे. त्यारबाद श्लोक १४ थी २६मां पाटणनगरनुं वर्णन छे. अहीं श्लोक १५मां ब्रह्माना विष्णुनी नाभिपीठ पर करेल निवास, कारण दर्शाव्युं छे. श्लोक २०मां प्रयुक्त 'शतबिन्दु' शब्दनो अर्थ विष्णु होय एम लागे छे. आगळ श्लोक २७ थी ३३मां देवकपत्तन (देवपुर-पाटण )नुं वर्णन छे. श्रीपार्श्वनाथप्रभुना चैत्यनी नोंध अहीं अगत्यनी छे. पछीना श्लोक ३४-३५-३६मां पोतानुं नाम जणावी विज्ञप्तिरचनानी वात जणावी छे.
हवे आगळनां २ पद्योमा सूर्योदयतुं ढूंकमां वर्णन करी श्लोक ३९ थी ४८मां चार्तुमास अने पर्युषणानी आराधना जणावी छे. तेमां अन्त्यषडङ्गी (ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-उपासकदशाङ्गसूत्र-अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-प्रश्नव्याकरणसूत्र-विपाकसूत्रना) स्वाध्यायनी अने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org