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जुलाई - २०१४
८). (३) चरम-जिनाष्टक (श्लो. ८).
आना पछी उपसंहाररूपे बे पद्यो छे.
उपर्युक्त त्रण तरंग पैकी पहेला ऋषभदेवथी मांडीने चन्द्रप्रभस्वामी सुधीना आठ तीर्थंकरोनी स्तुति छे. ओवी रीते बीजामां अमना पछीना आठनी अर्थात् सुविधिनाथथी शान्तिनाथ सुधीना आठ मध्यम तीर्थंकरोनी स्तुति छे अने त्रीजामां छेल्ला आठनी अटले के कुन्थुनाथथी ते महावीरस्वामी सुधीना तीर्थंकरोनी स्तुति छे.
आ त्रण तरंगोनो क्रमांक नवेसरथी न आपतां चालु अपायो छे अटले के अने ७मा, ८मा अने ९मा तरंग गणेला छे. आ नव तरंग पूर्ण थतां हुद पूरो थाय छे अवो उल्लेख छे. आ हुद पछी नीचे मुजबना त्रण तरंगो छ :
(१) क्रियादिगुप्तकरूप विश्वकालनीयव्यापिजिनस्तवाष्टक (श्लो. १८). (२) 'जीरापल्ली पार्श्वस्तवनाष्टक (श्लो. ९). (३) शारदास्तवाष्टक (श्लो. ९). ____ आ त्रणेना क्रमांक चालु अपाया छे अटले आ हिसाबे आ दसमाथी
बारमा तरंग छे. अमां पहेलामा क्रियादि गुप्तरूपे छे. बीजानो 'द्वितीय पुटभेद' रूपे निर्देश छे. आ पैकी दसमा तरंग उपर आगमोद्धारके पदच्छेद करवा पूर्वक क्रियापद वगेरे जे अहीं गुप्त छे तेनो स्पष्ट निर्देश कर्यो छे. ... आना पछी २५ स्तोत्रोवाळी स्तवपंचविंशतिका छे. १६मा स्तोत्र तरीके 'भुजंग-दण्डक'मां रचायेली चार पद्यनी वीर-दण्डक-स्तुति छे.
गुर्वावली- आ संस्कृतमां रचायेला ४९६ पद्योनी कृति छे. ओ वि.सं. १४६६मां रचायेली छे. अमां महावीरस्वामीथी मांडीने देवसुन्दरसूरि अने अमना पट्टधर सोमसुन्दरसूरि (श्लो. ३४५, ३४८-३६३ अने ३९१-४०६) तेमज तेमना शिष्यो सुधीनो क्रमबद्ध वृत्तान्त छे. आम आमां कर्ताना समयनी अनेक विश्वसनीय बाबतो रजू करायेली छे. नवाईनी वात तो ओ छे के कर्ताओ पोतानां
१. आनी पहेला मंगलाचरणरूपे बे पद्यो छे.
२. "कला काचित्"थी शरू थतुं अने 'नमस्कार-मंगल' नामना प्रथम स्रोतना ... बारमा तरंग तरीके निर्देशातुं नव पद्यतुं शारदास्तवाष्टक भ. स्तो. पा. का. सं.
(भा. २)नी मारी प्रस्तावना (पृ. ३३-३४)मां में उद्धृत कर्यु छे.
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