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अनुसन्धान-६४
जन्म, दीक्षा अने वाचकपद क्यां अने क्यारे थयां ओ जणाव्युं नथी.
गुर्वावलीना २६३मा पद्यमां का छे के भीमपल्लीनो (भीलडीयाजीनो) नाश थनार हतो ते जाणी 'ओ प्रथम कार्त्तिकमां चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करी अन्यत्र विहार करी गया. आम अहीं अधिक मास तरीके कार्तिकनो उल्लेख छे.
प्रस्तुत आचार्य 'तपा'गच्छना छे अने आजे केटलाये समयथी आ गच्छना अनुयायीओ अधिक मासमां सांवत्सरिक प्रतिक्रमण जेवी विशिष्ट धार्मिक क्रिया करता नथी तो सोमप्रभसूरिओ केम चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कर्यु इत्यादि प्रश्नो में मारा निम्नलिखित श्लेखमां रज़ कर्यां छे :
" 'अधिक' याने प्रथम कार्तिक मासमां चातुर्मासिक प्रतिक्रमण.' .
(जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास खण्ड २, प्र. ३३मांथी साभार उद्धृत)
आ काव्योमां रजू थयेला शिल्पना केटलाक अङ्गोनो परिचय तलपट्ट - चैत्यभूमि भारपट्ट - भारवट (?) सोपान - पगथियां निःश्रेणि - नीसरणी घटा( घण्टा) - ? देवकुलिका - देरी खण्डदेवकुलिका - ? गोमयमण्डली - ? १. धर्मघोषसूरिना शिष्य सोमप्रभसूरि. २. आवो बीजो उल्लेख वि.सं. १६५४ने अंगे जोवाय छे. अनी सविस्तार नोंध में
'अधिक मास' तरीके कार्त्तिकथी फागण तेम ज 'क्षय मास' तरीके कार्तिकथी पोष नामना मारा लेखमां लीधी छे. आ लेख "गु. मित्र तथा गु. दर्पण"
(साप्ताहिक) ता. ४-८-'५८ना अंकमां छपावायो छे. ३. आ लेख 'जैन" (पर्युषणांक, पु. ५७, अं. ३६-३७)मां प्रसिद्ध थयो छे.
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