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(२) युगादिदेवस्तवनाष्टक ( श्लो. १०)
(३) शान्तिजिनयमकस्तवाष्टक (श्लो. ११)
(४) पंचमवर्गपरिहार-श्रीनेमिजिनस्तवनाष्टक ( श्लो. १२)
(५) पार्श्वजिनस्तवनाष्टक ( श्लो. ११)
(६) वर्धमानस्वामिस्तव ( श्लो. १७)
आ पैकी प्रथम तरंग जोतां ओम भासे छे के अहींथी त्रिदशतरंगिणीनो प्रारम्भ थाय छे.
पहेला बे तरंगोमां आठ आठ पद्यो पछीनां बे पद्योने 'चूला' अने 'प्रतिचूला' तरीके ओळखावेलां छे ज्यारे त्रीजामां नवमा पछी अने चोथामां दसमा पछी आम छे. पांचमा तरंगमां आठमा पद्य पछीनां चूला, प्रतिचूला अने समर्थना-पंक्ति कहेलां छे.
अनुसन्धान-६४
वर्धमानस्वामिस्तव नामना छठ्ठा तरंगमां मंगलाचरणरूपे पहेलुं पद्य छे. त्यार पछी, ‘२' अ अक्षरवाळं 'ओकाक्षरी' पद्य छे. त्रीजा- अने 'चोथा पद्यमां 'स' अने 'र' ओ बे ज अक्षरोनो उपयोग करायो छे. आम आ 'द्वयक्षरी' पद्यो छे. ओवी रीते पांचमा पद्यमां 'व' अने 'र', छठ्ठामां 'र' अने 'य', सातमामां 'म' अने 'र' तेम ज आठमा अने 'नवमामां 'य' 'अने 'म', १० मा, ११मा अने १२मामां 'स' अने 'र', तेरमामां 'व' अने 'र'नो उपयोग करायो छे. आ 'द्वयक्षरी' पद्यो छे. चौदमुं पद्य उपसंहाररूपे छे. अने पछीनां त्रण पद्योने चूला, प्रतिचूला अने समर्थना-पंक्ति से नामथी ओळखाव्यां छे. आ छठ्ठा तरंगना श्लो. २ थी १४ उपर स्वोपज्ञ वृत्ति छे. ओने आधारे श्लो. २ थी १३ ने अंगे पदच्छेद, अन्वय अने स्पष्टीकरण आगमोद्धारके तैयार कर्यां छे.
आ छठ्ठा तरंग पछी 'चतुर्विंशतिजिनस्तवाशीर्वाद' नामनो हुद शरू थाय छे. अमां प्रथम मंगलाचरणरूपे ओक श्लोक आपी नीचे मुजबना त्रण तरंगो रजू कराया छे :
(१) आद्य - जिनाष्टक (श्लो. ८ + १ चूला). (२) मध्यम-जिनाष्टक (श्लो.
१. आ चोथुं पद्य त्रीजा पद्यना पाठान्तररूपे अपायुं छे. २. आ नवमं पद्य आठमाना पाठान्तररूप छे.
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