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जुलाई - २०१४
त्रिदशतरंगिणी संपूर्ण हजी सुधी मळी नथी. अनां ओछामां ओछां त्रण स्रोत छे. तेमांना प्रथम स्रोतनुं नाम 'जिनादिस्तोत्ररत्नकोश' किंवा 'नमस्कारमंगल' छे. बीजा स्रोतनुं नाम के अने अंगेनुं लखाण जाणवामां नथी. त्रीजा स्रोतनुं नाम 'गुरुपर्ववर्णन' छे. प्रत्येक स्रोतने महाहूद छे. तेमां प्रथम स्रोतने 'वर्तमानचतुर्विंशतिश्रीजिनस्तवचतुर्विंशतिका' नामनुं महाहद छे. बीजो स्रोत मळतो नथी. अना महाहूदना नामनी पण खबर नथी. वीजा स्रोतने 'गुर्वावली' नामनो महाहूद छे. प्रत्येक महाहूदने हुद अने हृदने तरंगो छे.
गुर्वावलीना अंतमां '६१ तरंगो' अवो उल्लेख छे. ओ एक रीते विचारतां अना ज तरंगोनी संख्या सूचवे छे पण साथे साथे ओम पण भासे छे के ओ गुर्वावली सुधीना विभागना तरंगोनी संख्या हशे. ___त्रिदशतरंगिणी'रूप आ विज्ञप्ति-लेख १०८ हाथ जेटलो लांबो होवानो उल्लेख जिनवर्धनगणिजे पोते वि.सं. १४८२मां रचेली पट्टावलीमां को छे.
अमां १०८ चिठ्ठीओ (चोंटाडायेली) होवानी वात वि.सं. १४८०मां हर्षभूषणगणि रचेला अंचलमतदलन-प्रकरणमा जोवाय छे. विशेषमां आ प्रकरणमां आ विज्ञप्तिलेखनो परिचय आपतां कर्तुं छे के अमां अनेक प्रासाद, पद्म, चक्र, षटकारक, क्रियागुप्तक, तर्क-प्रयोग, अनेक चित्राक्षर, व्यक्षर, पंचवर्ग-परिहार अने अनेक स्तव छे.२ धर्मसागरगणिो गुरुपरिवाडी (तपागच्छपट्टावली)नी गा. १६नी स्वोपज्ञ टीका (पृ. ६६)मां आ बाबतो उपरांत अर्धभ्रम, सर्वतोभद्र, मुरज, सिंहासन, भेरी, समवसरण, सरोवर, आठ महाप्रातिहार्यो इत्यादि नवा त्रणसो बंध जेटली विशेष हकीकत आपी छे.४
प्रथम स्रोतना प्रारंभमां नीचे मुजबना छ तरंग छे :
(१) मंगल-शब्द-श्लोक-सर्वज्ञाष्टक (श्लो. ६१०)
१. आमां अक स्थळे 'स्त्री जिननी पूजा करी शके' ओ वात छे. २. मूळ उल्लेख माटे जुओ D C GC M (Vol. XVIII, pt. 1, p. 130) ३. जुओ पट्टावली-समुच्चय (भा. १, पृ. ६६) ४. जुओ I L D (हप्तो २, पृ. ११६-११७) । ५.. आनी पहेलां त्रिदशतरंगिणीना मंगलाचरणरूपे अक पद्य छे. ६. आ श्लोकोनी संख्या छे.
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