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अनुसन्धान-६४
स्तम्भो, देवकुलिका आदि सर्व अङ्गोनां चित्रो-चित्रबन्धो वर्णवायां छे. ऋषभदेवना चैत्य, पण साङ्गोपाङ्ग आलेखन छे. स्थापत्यशास्त्रनी परिभाषानी आ शब्दावली पण तज्ज्ञो माटे अभ्यासतुं तेम जाणकारीनुं रूडं भातुं पूरे पाडे छे.
त्रीजो 'शान्तिनाथ-चैत्य'-अन्तहद छे. तेमां प्रथम तरङ्ग पीठ अने स्तम्भ धरावता गर्भागारनो छे. कुल ३ तरङ्गात्मक ३ स्तोत्र अने २४ पद्यो छे, जेमां शान्तिनाथ-चैत्यनी चित्ररचना वर्णवाई छे.
चोथा अन्तहदमां 'रैवताचलचैत्य'नो अधिकार छे. तेमां श्रीनेमिनाथ-स्तव छे. आमां ८ तरङ्ग छे. आमां गिरिनी उपत्यकाथी मांडीने चैत्यनां विविध तमाम अङ्गोनां चित्र छे, जेमां 'उंबर' (उंबरो), 'वत्तरङ्ग (ओतरंग) जेवी चीजोनो तथा तेना माटेना शब्दोनो पण समावेश थाय छे. कुल ३२ पद्यो छे. पांच स्तोत्रो छे. अन्ते लखेल पुष्पिकाथी समजाय छे के २ पद्योने न गणीए, तो ओक ज आलुं स्तोत्र गणाय तेम छे. चैत्यना वर्णनथी तेनी विशालतानो पण ख्याल । मळे छे.
पछी 'जीरापल्लीमण्डनपार्श्वचैत्यबन्धचित्र' एवो अन्तहद आवे छे. ४ मोटां स्तोत्र, ८ तरङ्ग अने ४२ पद्योमां आ अन्तहद पथरायो छे. चैत्यनु, तेनां अनेक अङ्गोनुं जे वर्णन छे ते जोतां जीरापल्लीमांनुं तत्कालीन चैत्य केटलुं मोटुं - विशाल हशे तेनो अंदाज मळे छे.
छेल्ले ‘महावीरजिनचैत्यचित्र' नामे अन्तहद आवे छे. आमां त्रण स्तोत्र, ४ तरङ्ग, २७ पद्यो छे. छेल्ले १ पद्य उपसंहारात्मक छे, तेमां कवि पञ्चजिनप्रासादबन्धनां स्तोत्रोनी समाप्ति सूचवे छे. ते पछी २ पद्यो छे जे महाहदनी
लघवः... महाहदे च नवमदशमौ मूलतश्च तरङ्गौ ।" आ विधानने लीधे केटलाक प्रश्नो जन्मे छे : १. जो अत्रे बे ज तरङ्गो पूरा थता होय तो "आ त्रण लघु छे" अq कथन केम? २. पूर्वना पंचासरपार्श्वस्तुतिरूप अन्तहदमां पांच तरङ्गो छे. तो अत्रे चार तरङ्गो होय तो महाह्रदमा मूलथी आठमा-नवमा तरङ्ग कहेवा जोई. तेने बदले नवमा-दशमा केम कह्या? व. ___माटे अत्रे १-२. पहेला महातरङ्गनी अन्तर्गत गिरिबन्ध अने तोरणबन्ध एम बे लघुतरङ्ग, ३. बीजो महातरङ्ग अने ४-५. त्रीजा-चोथा लघुतरङ्ग ओम कुल ५ तरङ्ग गणीने महाहूदना तरङ्गोनी सङ्ख्या मेळवी छे.
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