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________________ २२८ अनुसन्धान-६४ मनोहर मांननी मिल आत, रंभारूप झिलते गात, मदछक जोवनें मातीक, कंचू भीडीयां छातीक, रंभा रूपसी भातीक, चंचल कामकी तातीक, सझिकैं सोल ही शृंगार, ठमकैं पायला ठमकार, .. मोहन रसीलें मगनेंन, बोलत मधुर अमृत न, लज गात ज्यूं मथतूल, सूरतिह देखहे चितभूल, ओपैं घडीसें हथ ईश, मिल मिल नायका दश वीश, पांनी भरनकुं परभात, मोहन माननी मिल आत, निरख्या नागणेची थांन, चढिमैं डूंगरी सोपान, ज्याका दरस ही देखाक, परचा पूरही पेख्याक, ज्याका गुन्न ही गाएक, परिघल रिद्ध ही पेख्याक, इतना देव पुरकै पास, पूज्यां पूरहै मनआस. दोहा हाव भाव अति हैजसुं, वर्णन करुं वणाय, सैहर तणी सोभा सरस, देख्यां आवें दाय. १ सैहेंर कोट सूंदरवणे, वर्णव पोल विहद्द, प्रभुता ज्याकी पेखतां, मूंकै सात्रव मद्द. २ सुरसेवा हितकारणै, केई करत शुचि गात, तैसैं पोलैं पेंसता, वाव चौहाण विख्यात. ३ दरवज्जो दिस सादडी, पोलैं प्रथम प्रवेश, दरस समुखन ही देखीइ, गवरीसुतन गणेश. ४ ॥ तो छंद पद्धरी ॥ वरदयण वीर गवरीसुतन्न, करिवरपदन्न हेकहरदन्न, भजीई सुनांम नित प्रति प्रभात, प्रसरै न विघ्न प्रावित पुलात. १ झालीय वाव रम्य सुथानं, अति नृमल नीर सुर-सूरीय मांन, द्वे शिखरबंध देवल अनूप, निरखियें शुभ तोरण सरूप. २ रिषि करत जत्र जप जाप ध्यान, द्विरदास्य तत्र थिर थहर थान तह करत सेव्य घृत मिल सिंदूर, मल्लिक सुपत्त नैवैद्य पूर. ३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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