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अनुसन्धान-६४
अनुपम सेंकडो चित्र अने हजारो काव्य लखवामां आव्यां हता. तेमां ३ स्रोत अने ६१ तरङ्ग हतां. ते हाल सम्पूर्ण मळतो नथी. मात्र त्रीजा स्रोतनो 'गुर्वावली' नामनो एक विभाग अने प्रासादादि चित्रबन्ध केटलांक स्तोत्रो अहीं तहीं छूटां मळे छे. गुर्वावलीमा ५०० पद्य छे ने तेमां श्रमण भगवान श्रीमहावीरथी लईने लेखक सुधीना तपागच्छना आचार्योनो संक्षिप्त परन्तु विश्वस्त इतिहास छे." । (जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पारा ६७५)
श्रीहीरालाल र. कापडिया. आ विज्ञप्तिपत्रनो विस्तृत परिचय आपेलो छे, जे आ परिचय-लेख साथे जोडवामां आव्यो छे. ____ उपर जणाव्युं छे तेम, आ पत्रना ३ स्रोत (वहेण) छे. नदी, महाहद, तेना तरङ्गो वगेरे रूप कल्पनात्मक पदार्थो द्वारा निर्मित आ पत्र आखेआखो उपलब्ध नथी थतो. तेना छूटक-त्रुटक केटलाक अंशो उपलब्ध थाय छे, जेमां प्रथम स्रोतगत केटलांक स्तोत्रो मळे छे (स्तोत्रसंचय-भाग २), अने तृतीय स्रोतगत 'गुर्वावली' प्राप्त थाय छे, जे स्वतन्त्र ग्रन्थरूपे प्रकाशित थयेल छे (यशोविजय जैन ग्रन्थमाला-वाराणसी, वी.नि.सं. २४३७). सिवायना अंशो तेमज काव्योनां बन्धचित्रो क्याय उपलब्ध थतां नथी. ____ ताजेतरमा परमविद्वान् मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजीए पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरना ग्रन्थसङ्ग्रहमांथी आ पत्रनो एक अंश शोधी काढ्यो छे. तेनुं नाम “चैत्यषट्कबन्धचित्ररूप श्रीजिनस्तवावलि महाहद" एवं छे. १७ पत्रोनी ते प्रति डा. ११६, नं. ३३०७ लेखे नोंधाई छे. आ प्रति, मूळ प्रत परथी (के तेनी पुरातन प्रतिलिपि परथी) नवी, वीसमा शतकमां लखायेली छे. लखावट जोतां ते प्रवर्तक कान्तिविजयजीए लखावी होय एम अनुमान थाय छे. आ अंश २६२ श्लोकप्रमाण छे.
__ आ अंश जिनस्तवावलि महाहद स्वरूप होई, स्वाभाविक रीते ज, तेमां जिन-स्तव छे. परन्तु पत्तन-पाटणनगर वगेरेना वर्णनरूप आ अंश होवाथी सर्वप्रथम पत्तन-मण्डन श्रीपंचासर पार्श्वनाथना चैत्यनो आलेख (चित्र के नकशो) आलेखतुं चित्र-स्तोत्र कर्ताए रच्युं छे. आ श्लोकरचना के श्लोकलेखन एवी रीतथी थयुं हशे के जे ते श्लोक पूरां थतां ज जे ते आकृति ऊपसती आवे. अथवा एवं पण होय के जे ते आकृति - स्थापत्यकीय-मन्दिर
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