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अनुसन्धान-६४
सहु सत्रकौं चूरण आसकौं पूरण, ज्याकी जगतमें क्रीतक राजें, बने एकल्ल मल्ल अटल्ल सधीरज्यू, वीर-वडों महावीर विराजें. ३
दोहा जगहितधर्ता ज्योतिमय, कर्ता कर्म-अधीर, ... है हर्ता अग्यानतम, वंद्र प्रथम ज वीर. ४ देखण देशां-देसरा, आवै संघ असेष, . . . वीरादिक अब और हैं, खेडादेव विशेष. ५
॥ तों गझल ॥ खेडादेव रूपण खास, पूज्या पूरहैं मन-आस, रेवंतराय है गाजीक, ज्याकी साहिबी ताजीक, ताकै निकढ ही इक ताल, सोभित मानसरकौं बाल, पर्गट नाम है परतांप, परघल भरीए हे आप, .. . वाकै पास वन वाडीक, जाझी झाडकी झाडीक, ग्रीषम रित्तका सुखवास, चंगी जायगा कि(की)वलास, ज्याकी जौंख हैं भारीक, केती कहीइ तारीफ, ताकै निकट ही तट खूब, गिरवर सागरह महबूब, भरीयों लहर ही गंभीर, सूंदर गौंख हे तट तीर, वणीये विकट झंगी झाड, विषमा वंकडा पाहाड़, भर-भर चूरमांकी पोठ, हूंसी करत है तहां गोठ. जग्ग जुगतकी सोहैक, मुनिजन निरख ही मोहैक, चत्रभुज चर्चिई हरीदेव, सुर नर करें ज्याकी सेव, गोपीनाथकू गाएक, केई पार ही पाएक, देवल देखीइ अति चंग, जुगती वाव के जल गंग, जाझी झीलणेकी रूंस, रसीया आय पूरै हूंस५२, लखां लोककें भेलाक, मिलत अमावसें मेलाक, बैसें मांडकैं बाजार, दांणह लेत नां हुजदार, वेचैं क्रयांणाकी वस्त, घृत गुड वज्र अर्बुद सुस्त, एसें मास मासां अंत, मेला मिलै ऐसे तंत चामुंड चर्चिकाका थांन, ज्याका जोर है सनमान,
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