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________________ जुलाई - २०१४ २०७ ॥ इति विज्ञप्ती(प्ति) सज्झाय ॥ इच्छाकारेण सदी(दि)सह भगवन् अब्भुठिहं अभितर पांचे खामणे करी खामुं चउमासीयं संवत्सरीयं पक्खियं राइयं देवसियं पूर्वमेतद्वाच्यं । संवत्सरीयं खामम् । बारण्हं मासाणं, चउवीसन्नं पक्खाणं, तीनसो साठ रायंदयाणं जं किंचि अपत्तियं परपत्तियं भत्ते पाणे विणये वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए जंकिंचि मज्झ विणयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न याणामि तस्स मिछामी दुक्कडं ॥ ससतीश्री श्रीराधनपुर सुभ संघने पुजपरम, सकलभट्टारकपुरंदरभट्टारक सकरवरतीभट्टारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री १००८ श्रीवीजैजीनेंद्रसूरजी सरणजीवी सरणकमला[यमान] इनुथी वीजोवानगरथी सदा सेवग, आगनाकारी, दासानुदास, पादरजरेणु स्मान, सदा सैवग, हुकमी, सुहण देवी, सदजी, संगवी गेला, नाथा, सुंदर वोराये (?) लाधा वीरधा, मनोर सेठ दुरगा दला..... गीमा भगा, पदमीदासद्रला, सा० छाजु, सेठ खरता, सा. खीत्ता, सा. रूपा, सा. लाला स्मस्थ पंच संग री वंदणा १०८ वार अवधारसी । अठारा स्मसार श्रीपुजजी रा तेज परतापथी करेने भला सै । श्रीजीरी सपरीवाररा कागल स्मासार दरावसी।.... अतर श्रीजीनी करपाती करेने पजुस्ण परव ओसवमोसव गणा थीहा सै। पुजा प्रभावना पारणा पाखी स्मीयसल अठाही धरमकरणी पजुस्णमें गणी थही सै । उपवास सठ अठम अतीदुषतपसीआ वसेष थही सै । कलपसुतर रा आठे ही वखाण गंण ओसवथी वंचणा सै । हवे नएचंद]जी नंदीसुतर वंचाए सै । वखणे षडावसकसुतर वसाए सै । तण करी संग गणों राजी सै । श्रीश्रीपूजजी री आन्य अखंड पले सै । श्रीवीजीवारो संग ती .यणो श्रींजीरो आग्न्याकारी सै । तथा अठे आदेस श्रीजीसाहेबजीकी संग ऊपरे कोरपा करै ने पन्यास जीवणसागरजी, तेजसागरजी मोकली ही सो पन्यासजी भला गीतरथ सै । श्रीपन्यासजीरी देसना सारी सै । देसना सांभलनेथी संगनो मन राजीमंद थीहो सै । श्रीजी साहेबना गुण पन्यासजी रा मुखथी संभरीहा संग गणो हरखवंत थयो से जी । पन्यासजी सरीखा गीतारथी वरसी वरस आवे • तो संग गणो राजी वे । पन्यासजी आइ गया धरमधान, पोस, प्ररकमा, अठाही रे दन प्रभावना गणी थही । स्मसरी रे दन टंकादवरण लाडुदवरण गण • धरमधीआन् थही से । श्रीजी जोवारी संगरी अरज सै । श्रीवरेकाणजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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