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________________ २०६ धर्मध्यान इहां किण घणा, नित नित नवले नेह, उछ[व] महोछ्व अति भला कहतां नावे छेह. २ छठ अठम दशम पनर, मासखमण तपनेम, थया अनेक इहां किणै, नित अधिका भ्रम तेम ३ परव पजूसण पारणा, साहमीवछल सार, आडंबर अधिका थया, पुहुल अनेक प्रकार. ४ पोसह पडिकमणा तणो, नित नित अधिको नेम, दया धर्म नित नित नवो, धर्मध्यांन वली तेम ५ निराबाध सुख तप तणा, श्रीजिना सुखंकार, समाचार श्रीसंघनै, देज्यौ धरि अतिप्यार. ६ जिम इहां संघ समस्तने, उपजे अधिक आनंद, पूज्य तणा परभावसुं नित नित हूई सुखकंद. ७ संघ सकल कर जोडनै, एम करे अरदास, पउधारो श्रीपूज्यजी, चतुर तुमे चोमास. ८ अनुसन्धान- ६४ ॥ अथ विज्ञप्ति सज्झाय ॥ देशी रसीयानी ॥ पूज्यजी पधारो हो मरुधर देशमे, श्रीविजैजिनेंद्रसूरिंद गछाधिप, संघ निहाले हो तुमची वाटडी, मोर समा[ गम] इंद गछाधिप १ पूज्य जी...... दुर्लभ दरसण तुमचो जगतमां, जिम चिंतामणरत्न गछाधिप, सुलभ सदा जेहने उदये थयो, पूरव पूण्यं प्रयत्न गछाधिप. २ पूज्यजी...... अमने चाह सदा तुमची रहै, थे छो बेपरवाह गछाधिप, पण तुमने कहो कुण कहि सकै, ए नही अनुपम चाह गछाधिप. ३ पूज्यजी..... पुर पाटण धणी तिण परसरै, एक दीठे बीजो विसराय गछाधिप, मोहनगारा लोकमाया केवली, राखै तुम विलंबाय गछाधिप. ४ पूज्यजी.... दरसण तुमचो हर स(क्ष)ण देखवा, अम मन अधिक उछाह गछाधिप, नयण उमाया हो तुम मुख जोयवा, कीजीइं किरिया विशेस (ष) गछाधिप. ५ पूज्यजी...... श्रीविजैधर्मसूरिंदना पाटवी, श्रीविजैजिनेंद्रगणधार गछाधिप, पावन कीजे हो पूजजी पधारीनई, ए वीनती अवधार गछाधिप. ६ पूज्यजी ..... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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