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________________ जुलाई - २०१४ _१६५ १६५ तसु पट राजै रे सुधर्म गणधरु रे, ज्ञाता द्वादश अंग । जंबूस्वामी रे शिष्य सोहामणौ रे, चवद पूरवधर चंग ॥प० २॥ प्रभव शयंभव जगमें परगडो रे, श्रीयशोभद्र मुणिंद । श्रीसंभूतिविजय भद्रबाहूजी रे, श्रीथूलभद्र मुर्णिद ॥प० ३॥ एम अनुक्रम दस पूरवधरू रे, हूवा वयर मुणीस । श्रीजिनमत दीपायो भूतलें रे, सुर नर नामत सीस ॥प० ४॥ तास परंपर चन्द्रकुलें भला रे, श्रीकोटिक गणधार । श्रीउद्योतनसूरि सुहामणां रे, वयरी साख मझार ॥प० ५॥ वरधमान परमुख सीस जेहनां रे, च्यारअसी (८४) परमाण । गच्छ चौरासी प्रगट्या त्यां थकी रे, जाणो चतुर सुजाण ॥प० ६॥ तास सीस जिनेश्वरसूरिजी रे, दुर्लभराय समक्ष । खरतर विरुद लह्यो अति रूवडो रे, मठपति जीत प्रतक्ष ॥प० ७॥ नवअंगी वृत्तिकारक दीपता रे, अभयदेव मुनिराय । श्रीजिनवल्लभ जिनदत्त गछपती रे, श्रीजिनकुशल अमाय ।।प० ८॥ परम प्रभावक इण गछ मैं थया रे, आचारिज गुणवंत । सुद्ध समाचारी जग तेहनी रे, सुणि हरखित होय संत ॥प० ९॥ सुद्ध परंपरामां थया अनुक्रमैं रे, श्रीजिनअक्षयसूरीस ।। तास पटोधर जगमां परगडा रे, श्रीजिनचन्द्र मुणीस ॥प० १०॥ तेज प्रतापैं जीत्यो दिनमणी रे, सौम्यगुणें द्विजपत्ति ।। गंभीरम गुण सागर जीतीयो रे, सुर सेवै दिनरत्ति ॥प० ११॥ स्यादवाद जिनधरम वखाणतां रे, नय निक्षेप विचार । भंग पदारथ अति विस्तारसों रे, भाखै भवि हितकार ॥प० १२॥ ग्यान पूरव किरीया साधै भली रे, जिन वाणी अनुसार । एहनें सेवो रे क्युं भूला भमो रे, थाय सफल अवतार |प० १३॥ सुरतर छंडी बांवल आदरै रे, कोई नर मूढ गमार । ए ओखांणो साचो मत करो रे, लहि एहवो गणधार ॥प० १४॥ नामधारक आचारिज छै घणां रे, पंचम काल मझार । पिण इण सरिसो जगमां को नहीं रे, स्व पर तारणहार ॥प० १५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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