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जुलाई - २०१४
१२७
. (१२-१७) केटलाक पत्र-खरडा
.. - सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय . एक त्रण पत्रोनी प्रति छे, तेमां पत्र ३-४-७ ए क्रमाङ्कनां पत्रो छे. तेमां विज्ञप्तिपत्रोनो सङ्ग्रह होय तेम जणाय छे. तेमांना अमुक पत्रो त्रुटित के अधूरा छे. ते पत्रो खरडारूप होय तेम लागे छे. ते पत्रोना जेटला अंशो उकल्या ते अंशो अहीं आपेल छे.
पत्र १ : आमां २६ थी ४३ पद्यो छे. आर्याछन्द छे. ४१मा पद्यमां चेदिलपुर, उष्मापुर अने वजीलपुर एम ३ स्थळनामोनो उल्लेख छे, अने ४२मां बे गृहस्थ-नामो छे. पोताना गुरुने 'पितृचरण' तरीके निर्देश्या छे..
पत्र २ : आ पत्र २३ पद्यात्मक छे, पूर्ण छे. राजधन्यपुर-रांधनपुरमां विराजता वाचकवर्य (उपाध्यायजी) पर लखायेल पत्र छे. खरेखर तो आ पत्रात्मक खरडो छे, आ रीते पत्र लखी शकाय तेवू सूचववा माटे हशे. एटले लेखकनु, लेखनस्थान व.नुं नाम नथी. - पत्र ३ : आ पत्र पण पूर्ण छे, ३८ पद्यात्मक छे. आ पण खरडो होवाथी कोईनो नामोल्लेख नथी. श्लोकोनी रचना प्रासादिक छे..
पत्र ४ : आ खरडो पण पूर्ण छे, २५ पद्यात्मक छे. श्लोकरचना ____ चमत्कृतिसभर छे. वसन्ततिलका आदि छन्दो पर कर्ता- सारुं प्रभुत्व जणाय छे.
पत्र ५ : आ खरडामा २ ज पद्य सांपड्यां छे. बाकी प्रतिनां पत्रो नहि होवाथी उपलब्ध नथी.
पत्र ६ : आ त्रुटक-अधूरा पत्र-खरडामां त्रुटित ९ श्लोको मळे छे, - जेना प्रान्ते 'इति लेखविधिः' एम लखेल छे. - आ पछी ते पत्रोमां १ थी २० पद्यो छे, जे कोई पत्रमा लखवायोग्य गुरुवर्णनना खरडास्वरूप पद्यो जणाय छे.
अनुमानतः १७मा सैकामां लखायेल आ पत्रो छे. त्रुटक के खण्डित होवा - छतां काव्यरचनानी रीते उपयुक्त लागवाथी ते अत्रे प्रगट करीए छीओ.
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