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गरण थाय.
पूर्ण जणाता ६ पत्रोनी पद्यरचना छन्द, कल्पना, प्रास आदि दृष्टिए मजानी छे. प्रथम त्रुटित खरडागत २७-३४ श्लोको जुओ ! तेमां प्रत्येक द्वितीय अने चतुर्थ चरणोमां 'करणानां-चरणानां' आवी जे प्रास-मेळवणी थई.छे, ते केटली बधी मधुर छे ! 'आनन्दविज्ञप्ति'मांना प्रास-योजन- अहीं स्मरण थाय.
त्रीजा पत्र-खरडामां गुरु विषे कवि केवी केवी कल्पनाओमां उड्डयन करे छे ! एक ज पद्य लईए : गुरुनी अनुपम विद्वत्ताथी प्रभावित थयेला बुद्धिमान् जनोए मान्यु के बृहस्पति आकाशमां भमीभमीने थाक्यो होवाथी तेणे आ गुरुवरना स्वरूपे आ धरती पर आवी रहेवानुं स्वीकार्यु जणाय छे ! (३६)
ढूंकमां आ बधा ज संस्कृत पत्रो पोताना भाषाना तथा कल्पनाओना वैभवने कारणे पत्र-काव्य साहित्यमां आगवी भात पाडी जाय छे. संस्कृतज्ञोने माटे आ पत्रो भावतां भोजननी गरज सारशे तेमां शङ्का नहि.
(१८). अने हवे विभाग शरु थाय छे भाषामय पत्रोनो. सौप्रथम पत्र हिन्दी भाषामां लखायेल पत्र छे. लक्ष्मणपुरी-लखनऊमां स्थित आचार्य उपर जयपुरथी लखायेल आ दीर्घपत्र, तेना छन्दोवैविध्यने कारणे तेमज कल्पनासौन्दर्यने कारणे ध्यान खेंचे तेवो छे. आनो योग्य परिचय तेना सम्पादके तेनी भूमिकामां आप्यो ज छे. ... लखनऊनी ओळख लछमणपुर अने लखनोउ एवां नामोथी आपेल छे. लक्ष्मणपुर-लछमणपुर-लखमणपुर-लखणउर-लखणोउर-लखणोउ-लखनोउलखनऊ आम ते नामनी अपभ्रंशयात्रा कल्पी शकाय. त्यांना व्यापारीनं वर्णन करतां कवि सुन्दर स्वभावोक्ति प्रयोजे छे : "व्यवहारी मोटा, नहीं धन छोटा, दुंदाला सुभ ठाय" (छन्दजाति ५).
गुरुवर्णनना भुजङ्गीछन्दो जोतां कविनी भाषा पर चारणी बोलीनी गाढ असर होवानुं स्पष्ट जणाई आवे. राजस्थानी कवि होय अने चारणी के डिंगळना स्पर्शथी अस्पृष्ट रहे ते तो केम ज बने ? 'अमृतध्वनि' नाम हेठळ जे बे दूहापूर्वकना छन्द छे, ते कविप्रतिभाने उत्तमरूपे उजागर करे तेवां छे. 'छन्द चालि' ते आपणा हरिगीतनी याद अपावे छे. तो 'निसाणी'मां एक एक पंक्तिमां 'नमंदा-पसरंदा' आवो क्रियापद-प्रयोग छे ते पण कविनी लाक्षणिकतानो द्योतक छे. ते पछीना दूहाओमां गुरु माटेनो हृदयगत भाव उर्मिल रीते प्रगट थतो
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