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________________ 12 मळे छे. अकाद कल्पना जोईए : मोक्षनगरना प्रवेशद्वारे ४ कषायना अने ३ दण्डनां एम ७ ताळां मार्यां - छे, अने ते रीते ते द्वार नियन्त्रित होय छे. पार्श्वप्रभुए ते द्वारमा प्रवेश तो पामवो छे, पण ताळां केम खोलवां? कई चावी प्रयोजवी? त्यारे कवि कहे छे के प्रभुना मस्तक पर विराजतो ७ फणानो समूह ते ज ७ ताळांने उघाडी आपनारी ७ चावी.छे (१३). कमठ नामना असुरे पार्श्वप्रभुने करेला उपद्रवनो प्रसंग कविनी कल्पना आ रीते वर्णवे छे : ए अधम दैत्ये वरसावेली विकराळ जलधारानी वष्टिने परिणामे प्रभुनो कोप-अग्नि तो ठरी गयो, पण तेमनो ध्यान-अग्नि तो वृद्धिंगत : थई गयो ! केवू कौतुक आ ! (११). ७५ थी ८० मां 'गुरु'नुं गुणगान अथवा माहात्म्यवर्णन केटलुं भावपूर्ण थयुं छे ! अने कविनी विद्वत्प्रतिभा तो आ पद्यमां जोवा मळे छे : 'वायु' द्रव्यमां 'गन्ध'नो गुण नथी एम इतर दर्शनो माने छे. जैन दर्शन तेनामां ते गुण होवार्नु स्वीकारे छे. अने बीजूं, तीर्थङ्करनो श्वासवायु हमेशां सुगन्धित होवा जैनो स्वीकारे छे. आ बे मुद्दा जाण्या पछी, 'साधारणजिनद्वादशगुणस्तुति'ना सातमा पद्यने जुओ : जे जिने पोताना, घ्राणेन्द्रियथी प्रत्यक्ष अनुभवाता अने पुष्प वगेरेना औपाधिक सान्निध्य वगरना, सुरभित एवा श्वासरूप पवन वडे ज, 'वायुमां पण गन्धगुण होवा'- सिद्ध कर्यु छे ते (जिनने वन्दन हो!) । ___आवी तो अनेक कल्पनाओथी छलकाती आ लेखपद्धतिनां काव्यो तज्ज्ञो माटे गोळना गाडा जेवां ज पुरवार थशे. (८-११) आ पछीना ३ पत्रो प्रमाणमां घणा ढूंका छे अने महदंशे गद्यात्मक छे. तेमनो परिचय तो त्यां ज संक्षिप्त भूमिकामां आपेल छे. ते पछीनो एक अपूर्ण . पत्र ते गच्छपति द्वारा लखेल प्रसादपत्ररूप छे. (१२-१७) 'केटलाक पत्र-खरडा' शीर्षक हेठळ आपवामां आवेल त्रुटित अथवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520565
Book TitleAnusandhan 2014 08 SrNo 64
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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